Saturday, 22 June 2019

मेरी कलम जो भी लिखे


मेरी कलम जो भी लिखे

मेरी कलम जो भी लिखे , इबादत समझ क़ुबूल कर मौला
अमानत हो जाए ये कलम , इतना तो करम कर मौला

अल्फाज़ों का एक समंदर दे , जो तुझे बयाँ कर सके मौला
अश्फाक हो तेरा मुझ पर , इतना तो करम कर मौला

अपनी परवरिश में ले मुझको , मेरे अल्फाज़ों को इबादत कर मौला
मेरी कलम को अपनी बंदगी अता कर , मेरे अल्फाज़ों को सदका समझ मौला

मेरी कलम को तुझसे कोई शिकवा नहं , मेरी कलम को सुकूँ अता कर मौला
तेरी इबादत का गुलिस्तां रोशन कर सकूं, इतना करम कर मौला

तेरे नूर का चर्चा मेरी कलम से हो , यह करम कर मौला
मेरी कलम को अपने दर की रौशनी अता कर मौला

मेरी आरज़ू है मेरी कलम से रोशन हो मेरी जिन्दगी का सफ़र
मेरी इस आरज़ू को अपना करम अता कर मौला


मैं खुद को संवार लूंगा


मैं खुद को संवार लूंगा


मैं खुद को संवार लूंगा , ये यकीं है मुझे
मैं तुम्हारी राह के कांटे चुरा लूंगा , ये यकीं है मुझे

मैं तेरे सपने संवार दूंगा , ये यकीं है मुझे
मैं खुद को भी संभाल लूंगा , ये यकीं है मुझे

आसमां को अपनी मंज़िल कर लूंगा , ये यकीं है मुझे
मैं अपनी आवाज़ बुलंद कर लूँगा , ये यकीं है मुझे

अपनी कलम को खुदा की इबादत कर दूंगा , ये यकीं है मुझे
मेरे गीत, मेरी ग़ज़ल लोगों की जुबां पर होंगे , ये यकीं है मुझे

अपना खुद का आसमां संवार लूंगा , ये यकीं है मुझे
मेरी हर एक आरज़ू उस खुदा की नेमत हो जाए , ये यकीं है मुझे

मैं मना ही लूंगा उस खुदा को एक दिन , ये यकीं है मुझे
हर एक मुसीबत में खुद को संभाल लूंगा , ये यकीं है मुझे

मैं गीतों का एक कारवाँ सजा लूंगा , ये यकीं है मुझे
मेरी हर एक उम्मीद को होगा आसमां नसीब , ये यकीं है मुझे

मेरे भी दामन में खुशियाँ बिखर आयेंगी , ये यकीं है मुझे
मैं इंसानियत का एक समंदर रोशन कर दूंगा , ये यकीं है मुझे

मैं अपनी भीगी नम आँखों में मुस्कान भर दूंगा , ये यकीं है मुझे
मैं अपने सोये मुकद्दर को जगा लूंगा , ये यकीं है मुझे

मैं स्वयं को मुजरिम होने से बचा लूंगा , ये यकीं है मुझे
मैं अपनी तमन्नाओं , आरजुओं का एक आसमां रोशन कर लूंगा , ये यकीं है मुझे


अपने ग़मों को सी लें


अपने ग़मों को सी लें

अपने ग़मों को सी लें, अपने गमो को पी लें
अपनी खुशियों , अपनी आरज़ू को आबाद करें फिर से

क्यूं न कर अपने जीने के ज़ज्बे को बरकरार रखें
अपने दामन को खुशियों से आबाद करें फिर से

क्यूं कर कहे कोई , हमें अपना मुजरिम
किसी की अँधेरी रातों में उजाला करें फिर से

ख़्वाब हैं कि बिखरते है कभी संवरते हैं
अपनी कोशिशों का समंदर रोशन करें फिर से

क्यूं कर किसी को गिरता हुआ देखे कोई
किसी की मरमरी बाहों को सहारा दें फिर से

आंसुओं का कतरा  - कतरा सिसकती जिन्दगी क्यूं हो
किसी के लबों पर मुस्कान बिखेरें फिर से

अजनबी  - अजनबी सा समझ घूरती आँखें
रिश्तों में अपनापन का ज़ज्बा जगाएं फिर से

किसी के दामन में दाग लगे तो क्यूं कर लगे
कोशिशों का एक कारवाँ सजाएं फिर से



Friday, 14 June 2019

आसमां तुम्हारा है


आसमां तुम्हारा है

आसमां तुम्हारा है उड़ान भरकर देखो
मंजिल तुम्हारी है प्रयास कर देखो

खुशनुमा वादियाँ तुम्हारी हैं , उड़ान भरकर देखो
विजय पताका लहराएगी तेरी, कोशिश कर देखो

पुण्य हो जायेंगे चरण तेरे, सत्कर्म कर देखो
पावनता को छू लोगे तुम, सत प्रयास कर देखो

अभिनन्दन तेरा भी होगा , सत चिंतन कर देखो
जयमाल तुझको भी मिलेगी , पुण्य कर्म कर देखो

दुर्गुणों का नाश होगा , सत्मार्ग पर चलकर देखो
विजय तुझको ही मिलेगी , सत्कर्म कर देखो

संवेदनाओं को बल मिलेगा , सेवा को धर्म कर देखो
गगन पर होंगी निगाहें तेरी, कोशिश कर देखो

आस्तिक हो जायेंगे विचार तेरे, उस खुदा से मुहब्बत कर देखो
ईश्वर भी तेरा मुरीद होगा, कोशिश कर देखो

हर पात में उस खुदा का दीदार होगा , उस खुदा पर एतबार कर देखो
तेरे हर एक प्रयास में उस खुदा की रज़ा होगी कोशिश कर देखो



क्षणिकाएं


क्षणिकाएं

मुहब्बत में अंजाम की परवाह किसे
ये वो शै है जिसका कोई अंजाम नहीं

अफ़सोस नहीं है मुझे मेरी मुहब्बत की नाकामी का
इतना ही काफी है मेरे लिए, मैंने उसे चाहा तो दिल से था

अमानत हो गए वो किसी और की
पर आज भी काबिज हैं वो मेरे दिल के आशियां में

अज़ीज़ है वो मुझे दिल की गहराइयों तक
चाहे वो खुश हो रहे हों किसी गैर की बाहों में

मैं आरज़ू करता नहीं आहिस्ता  - आहिस्ता उसके करीब जाने की
वो आहिस्ता  - आहिस्ता किसी और के करीब हो गए

इज़हार न कर सका मैं अपनी मुहब्बत का उनको
सिला ये मिला वो किसी और की जिन्दगी का नूर हो गए

इनाम ये मिला मुझे, मेरी मुहब्बत का यारों
मैं उन्हें ढूंढता रहा , वो किसी और के हो लिए

जिन्दगी  - ए  - तन्हाई वो महसूस क्या करें
जो जी रहे हैं किसी और की मुहब्बत की छाँव में

किनारा हर किसी को नहीं मिलता
सहारा हर किसी को नहीं मिलता
डूबते तो सभी हैं एक दिन मुहब्बत में
पर  मुहब्बत – ए  - खुदा सभी को नहीं मिलता

अपनी खूबसूरती को समझ बैठे वो
ताउम्र की अमानत
आखिर वक़्त ने उन्हें
आईना दिखा ही दिया

इज़हार क्या करूं मैं अपनी
इबादत का ऐ मेरे खुदा
ये तेरा करम है जो
मैं तेरा नमाज़ी हो गया

तदबीर से ज्यादा यकीन
मैंने अपनी तकदीर पर किया
जो भी मिला मुझे ऐ मेरे खुदा
मैंने उसे अपना मुकद्दर समझ लिया

दाग धोने की उनको फ़िक्र नहीं है ऐ मेरे खुदा
तभी तो गुनाह  पर गुनाह किये जा रहे हैं लोग


Wednesday, 12 June 2019

मेरे हर एक दर्द में


मेरे हर एक दर्द में

मेरे हर एक दर्द में , मेरा सहारा है वो
बीच मझधार में , किनारा है वो

खुशियों के पल , भूल जाते हैं जिसे लोग
मेरा खुदा , मेरा प्यारा है वो

जिसके रहमो  - करम पर , पल रही दुनिया
मेरे हर एक गम में , मेरा सहारा है वो

दिल से याद करो , तो करीब नज़र आता है वो
नम करता है आँखें , तो मुस्कुराहट भी लाता है वो

भटकता है जब मानव , राह दिखाता है वो
कभी गम , कभी खुशियों का समंदर लाता है वो

उसके दर पर , जब भी कोई जाता है
अपनी बाहों को , उसका सहारा बनाता है वो

मैं जब भी उसे , दिल की गहराइयों से याद करता हूँ
मेरी हर एक कोशिश में , नज़र आता है वो

मेरे हर एक गम हर एक दर्द में , मेरा सहारा है वो
कभी लहरों पर पतवार, तो कभी किनारा है वो


मेरी आरज़ू को


मेरी आरज़ू को

मेरी आरज़ू को खुला आसमां नसीब न हुआ
मेरी आरज़ू को उस खुदा का करम नसीब न हुआ

मेरी चाहतों का समंदर कभी रोशन न हुआ
उनकी वफ़ा का मुझ पर कभी करम न हुआ

मैंने अपनी मुहब्बत में कोई कसार न बाकी की थी
मेरी मुहब्बत का आशियाँ कभी रोशन न हुआ

मेरी आरज़ू  - ए  - मुहब्बत कभी मेरी न हुई
मेरी बाहों को उनका प्यार नसीब न हुआ

हर पल उसकी आगोश में जीने की आरज़ू लिए जिया मैं
दो पल उसकी आगोश में जीना नसीब न हुआ

उसकी आँखों की मस्ती ने किया मुझे घायल
उसकी आँखों का जाम मुझे नसीब न हुआ

उनकी मदमस्त चाल ने किया था कुछ ऐसा असर
दो कदम भी उनका साथ नसीब न हुआ

मेरी आरज़ू थी मुहब्बत का आशियाँ रोशन करूं उनका साथ लिए
मेरी आरज़ू को मुहब्बत का आशियाँ नसीब न हुआ


Tuesday, 11 June 2019

कचरा - कचरा - कचरा


कचरा  - कचरा  - कचरा

कचरा  - कचरा – कचरा
चारों ओर कचरा
यहाँ और वहां
जहां और तहां
फैला है केवल
कचरा  - कचरा – कचरा
धरती में समंदर में
सभी जगह कचरा
कागज़ का कचरा
प्लास्टिक का कचरा
रसोई में जो बच गया
वह भी कचरा
कचरे की माया
है अजब निराली
जिसने भी जो कुछ छोड़ दिया
हो गया कचरा
धरती पर जगह न बची तो
आसमां में कचरा
सागर में केमिकल का कचरा
तो आसमां में सेटेलाइट का कचरा
मरने पर जो नदी में बहा दिया गया
 वह अस्थियों का कचरा
ज्वालामुखी जो फूटा
तो राख के बादलों का कचरा
सुनामी जो आये तो
गाँव  के गाँव हुए कचरा
बाढ़ जब आ जाए तो
फसलें हो जाएँ कचरा
इस कचरे की माया से
कोई बच न पाया
घर में कचरा, गली में कचरा
मोहल्ले में कचरा , तो गाँव में कचरा
गाँव से जब भागे तो
शहर में पाया कचरा
पूरी दुनिया घूम आया
पाया हर जगह कचरा
चाँद पर गया तो देखा
हवा में तैरता कचरा
ये तो हुई
प्राकृतिक कचरे की बात
एक और प्रकार का
कचरा होता है
जिसे कहते हैं
सामाजिक कचरा
ये वो कचरा है
जिसमे सामाजिक परिवेश में
विचार रहे
वे असामाजिक तत्व
जो सामाजिक बंधनों से परे
समाज में
अप्राकृतिक कृत्यों को
अंजाम देते हैं
और अनुशासनहीनता का
श्रेष्ठ परिचय होते हैं
ये दुश्चरित्र
समाज में
अपराध को जन्म देते हैं
अपने भृष्ट आचरण से
ये समाज को प्रदूषित करते हैं
समाज में इस प्रकार के चरित्र
अपनी स्वार्थपूर्ति हेतु
निम्न से निम्न स्तर के
कृत्य को निडरता से अंजाम देते हैं
इन प्रकार के चरित्रों में
संवेदनाओं का अभाव होता है
ये जंगलियों की भांति
यहाँ से वहां विचरते हुए
अपने विलासितापूर्ण जीवन
में मस्त रहते हैं
ये अपनी प्रकृति के हिसाब से
जंगली होते हैं
इनमे मानवता का अभाव होता है
इनमे इंसानियत नामक तत्व की कमी होती है
ये बुराई के सागर में गोते लगाते रहते हैं
इनको आसपास देख
सामाजिक प्राणी भय खाते हैं
ये असामाजिक प्राणी
धूर्त एवं घमंडी होते हैं
इन्हें आजकल
सुपारी किलर , मौत के दलाल, भाई एवं कई और
आपराधिक प्रकृति से पोषित राजनीतिज्ञ
इत्यादि  - इत्यादि
नामों से संबोधित किया जाता है
इनमे ज्ञान का अभाव होता है
इसलिए इन्हें
कुटिल, कुहृदय, अधम, खल, दुष्ट
आदि शब्दों से भी
संबोधित किया जाता है
ये दुश्चरित्र पुण्य एवं सज्जन चरित्रों के लिए
पीड़ा, क्लेश, वेदना, एवं असामयिक मृत्यु का कारण होते हैं
आइये इस बात पर ध्यान केन्द्रित करें
कि प्राकृतिक कचरे को
समाज से हटाना जरूरी है
या
इस मानवरूपी असामाजिक कचरे को

आपके सुझाव के इंतज़ार में ...................