पुरस्कार और पारितोषक
पुरस्कार और पारितोषक, क्या
मुझे प्रेरित करेंगे
भ्रम और संदेह , क्या मेरी
कोशिश में बाधा बनेंगे
तर्क और वितर्क से मेरे
सपनों का नाता कैसा
लोभ और तृष्णा , क्या मुझे पथ से विमुख करेंगे
मुझे तो बढ़ चलना है ,
कर्तव्य की राह पर
मुझे तो अग्रसर होना है ,
प्रयासों की अनुपम धरा पर
अनुभव और अनुभूति को कर
लूंगा अपनी धरोहर
अंतःकरण को प्रेरित कर, बढ़
चलूँगा मंजिल शिखर पर
मेरे सुनियोजित प्रयासों
को, जीत - हार का भय कैसा
अपनी विवेक और ज्ञान को
आत्मविश्वास से सींचकर
खुद को पोषित करूंगा , उजाले की राह पर प्रस्थित
होकर
प्रत्येक प्रतिकूल
परिस्थिति को भी अपने अनुकूल कर लूंगा
कटु और कठोर वाणी भी मुझे
मेरे पथ से डिगा न सकेगी
दुश्चरित्र को अपनी योजना
में सफल नहीं होने दूंगा
खुद के प्रयासों पर सब कुछ
समर्पित करूंगा
रोशन कर कीर्ति पताका , मैं
अग्रसर हो चलूँगा
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