Wednesday, 23 January 2019

नारी , क्या मैं सत्य नहीं हूँ ?




नारी , क्या मैं सत्य नहीं हूँ ?

मुझे खोजता मानव
मुझे समझने का
प्रयास करता मानव
इस प्रयास में
स्वयं को भूलता, भटकाता
समझ नहीं पाता
मेरे सत्य को
या यूं कहूं
समझना नहीं चाहता

वह मुझे कभी
पत्रिका के मुखपृष्ठ पर खोजता
तो कभी पत्रिका के अंतिम पृष्ठ पर
तो कभी बालकनी से टोहता
उसकी उत्सुकता उसे
बाध्य करती
कभी खजुराहो की
कलाकृति में
जीवन का सत्य ढूंढता

कितना प्यारा सत्य है
कि नारी हूँ मैं

मुझे खोजना छोड़ मानव
मेरे शरीर को सत्य समझना छोड़

मेरे प्रेम, मेरा वात्सल्य
मेरी मातृत्व छवि
मेरे दायित्वों का निर्वहन
मेरे भीतर का द्वंद्व

मेरी जीवन के प्रति लालसा
मेरा स्वयं का अस्तित्व
मेरी अभिलाषा , मेरी मंजिल
सब कुछ तो सत्य है
मेरे सपने , मेरा आसमां
सब कुछ तो सत्य है

क्या कुछ ऐसा है ?
जो मुझसे छूट गया है
या कुछ ऐसा सत्य भी है
कि बहुत कुछ छोड़ने को
मुझे बाध्य किया गया है
मैं नारी हूँ
ये एहसास बार – बार
कुरेद  - कुरेद कर
                                                                                     
गुलाब सबको पसंद है
पर उनको मसलना
न कि उसकी खुशबू से
स्वयं को , संसार को आनंदित करना

कौन से सत्य के साथ जीता मानव ?
किस सत्य की परिकल्पना के साथ ?

नारी के लिए कितने सत्य ?
कितनी अग्नि परीक्षाएं ?
क्या किसी खुशनुमा सुबह की
कल्पना करे आज की नारी ?

क्या हम उसे एक
खुला आसमां सौंप सकते हैं ?
क्यों कर हर पल सिसकती नारी ?

घर की दहलीज़ लांघते ही
एक अनजान भय के साथ
स्वयं को असुरक्षित महसूस करती
आज की नारी

आखिर किस कुंठा का
शिकार हो  रहा है
आज का मानव
उसकी अपेक्षाएं या फिर
उसकी अतिमहत्वाकांक्षाएँ
किस सत्य की ओर अग्रसर ?

इस बहकी  - बहकी सोच का
 कोई अंत भी है या
यूं ही घसीटते रहेंगे
हम अनगिनत असत्य  
या फिर आएगी कोई नई सुबह
होगी कोई नई भोर
लेकर आएगी कोई शुभ सन्देश
क्या जागेगा मानव ?
क्या नारी सत्य से भिज्ञ हो
पायेगा मानव ?
आओ चलो सजाएं
एक नई सुबह .......














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