Monday 28 May 2018

अपने परायों के बीच

अपने परायों के बीच


अपने परायों के बीच झूलती , इस जिन्दगी में
संवैदनाओं की आस , अभी बाकी है

पिघलते आंसुओं और ठहाकों के बीच झूलती , इस जिन्दगी में
संवेदनाओं की आस , अभी बाकी है

टूटते रिश्तों और प्रगाढ होते नए रिश्तों के बीच झूलती , इस जिन्दगी में
संवेदनाओं की आस , अभी बाकी है

चरमराते संस्कृति , संस्कार और आधुनिकता के पालने में झूलती , इस जिन्दगी में
संवैदनाओं की आस , अभी बाकी है

लेखन को जिन्दगी कहने वाले और जिन्दगी का एहसास जगाने वालों से
संवेदनाओं की आस , अभी बाकी है

उस खुदा को थाहने वालों से , इंसानियत की राह दिखाने वालों से
संवेदनाओं की आस , अभी बाकी है

आँसुओं के समंदर में डूबे हैं जो, सिसकती साँसों का कारवाँ लिए जी रहे हैं जो उनके दिलों में भी ,
संवेदनाओं की आस , अभी बाकी है

जिसके वजूद से हमारा वजूद , उस खुदा की पाक दुनिया में , हम सबके लिए
संवेदनाओं की आस , अभी बाकी है

दिलों को रोशन कर रहे उस खुदा का करम , उसके बन्दों की पाकीज़ा रूहों से
संवेदनाओं की आस , अभी बाकी है


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