Monday, 28 May 2018

भारत को एक नया विचार चाहिए

भारत को एक नया विचार चाहिए

भारत को , एक नया विचार चाहिए
संस्कारों से पोषित , एक संसार चाहिए
पश्चिम के विद्यारों से जो , दूषित न हो
आएरत को ऐसे , संस्कार चाहिए
दिलों की धड़कन बन जो , रोशन हो जाए
मारत को ऐसी संस्कृति का , आधार चाहिए
लक्ष्मी, दुर्मावती सी , पोषित हों नारियां
नारी शक्ति की घर - घर गंगा , बढ़नी चाहिए
अष्टाचार से मुक्त हो , समाज और राजनौति
अपराधों से मुक्त , एक समाज चाहिए
मरते हैं ओ , कुर्सी की खातिर
सत्ता के सोझियों का , बहिष्कार चाहिए
बह न जाए आधुनिकता की , बाढ़ की चपेट में
आरत को आशाओं का , अंबार छाहिए
गौंतों में स॒जे. कभी गजनों में निखरे
उम्मीदों से सजी कसम का , दीदार चाहिए
पथ अभित होती , युवा पीढ़ी को
विवेकानंद सा , मार्गदर्शन चाहिए
भविष्य का सुन्दर सपना , देखें सभी
भारत को स्वस्थ समाज का , दर्पण चाहिए




जिन्दगी

जिन्दगी

कभी आह जिन्दगी, तो कभी वाह जिन्दगी
कभी सूखे झरनों का सच, तो कभी सरिता का बहाव जिन्दगी

कभी पूनम का चाँद, कभी अमावस का चाँद जिन्दगी
कभी कल - कल करती कालिंदी का एटसास, कभी मरुथल में जल की थाह जिन्दगी

कभी मधुर संगीत का आभास जिन्दगी, कभी बेसुर होती बयार जिन्दगी
कभी ऑगन का गुलाब जिन्दगी, कभी मरुथल में खुशबू का अभाव जिन्दगी

कभी किताबों में समाई “puzzles” सी जिन्दगी , कभी “riddles” सी उलझती जिन्दगी
कभी नन्ही मुस्कान का आभास जिन्दगी , कभी किसी की सिसकती साँसों का दर्द
जिन्दगी

कभी अखबार का समाचार जिन्दगी, कभी सुविचारों का आगाज़ जिन्दगी
कभी गमों का पहाड़ जिन्दगी, कभी मनोहर श्रृंगार जिन्दगी

कभी अल्फाज़ों का आगाज़ जिन्दगी, कभी शायरों का अंदाज़ जिन्दगी
कभी जो रूठ जाए अपने , अपनों को मनाने का अंदाज़ जिन्दगी

कभी आफ़ताब सी रोशन हो जिन्दगी , कभी धूल भरी आंधी जिन्दगी
कभी आरजू का समंदर होती जिन्दगी, कभी शांत झरनों का एहसास जिन्दगी

कभी इनकार तो कभी डइकरार जिन्दगी, कभी डबादत तो कभी एहसास जिन्दगी
कभी गीतों सी तो कभी ग़ज़ल सी जिन्दगी , कभी जो रूठ जाए तो नरक सी जिन्दगी

कभी नज़्म बन रोशन हो जिन्दगी, कभी गीतों की मधुर तान जिन्दगी
कभी पाकीज़ा इबादत है जिन्दगी, कभी उस खुदा की नवाज़िश है जिन्दगी

जिन्दगी को जीना है तो जीने का अंदाज़ जिन्दगी , कभी दूसरों का दर्दे - एहसास
जिन्दगी
कभी उस खुदा की पनाह जिन्दगी , फूलों सा खिलों तो उपवन है जिन्दगी,
कॉटों सा जो बिखरे तो बेज़ार जिन्दगी




अंदाज़े बयाँ

अंदाजे बयाँ

वफ़ा की राह में , बहुत से मुकाम आयेंगे
तेरी वफ़ा को , हर पल हर तरह से आजमाएंगे
अपनी वफ़ा पर करना होगा , तुझको यकीन
यूँ ही नहीं सितारे तेरी , वफ़ा के रोशन हो पायेंगे

चुनातियों से लड़ना ही जीवन है
उम्मीद की खिड़की को खुला रखना
संघर्ष के दौर में , मंजिल का पता रखना
उम्मीद की खिड़की को खुला रखना


अपने परायों के बीच

अपने परायों के बीच


अपने परायों के बीच झूलती , इस जिन्दगी में
संवैदनाओं की आस , अभी बाकी है

पिघलते आंसुओं और ठहाकों के बीच झूलती , इस जिन्दगी में
संवेदनाओं की आस , अभी बाकी है

टूटते रिश्तों और प्रगाढ होते नए रिश्तों के बीच झूलती , इस जिन्दगी में
संवेदनाओं की आस , अभी बाकी है

चरमराते संस्कृति , संस्कार और आधुनिकता के पालने में झूलती , इस जिन्दगी में
संवैदनाओं की आस , अभी बाकी है

लेखन को जिन्दगी कहने वाले और जिन्दगी का एहसास जगाने वालों से
संवेदनाओं की आस , अभी बाकी है

उस खुदा को थाहने वालों से , इंसानियत की राह दिखाने वालों से
संवेदनाओं की आस , अभी बाकी है

आँसुओं के समंदर में डूबे हैं जो, सिसकती साँसों का कारवाँ लिए जी रहे हैं जो उनके दिलों में भी ,
संवेदनाओं की आस , अभी बाकी है

जिसके वजूद से हमारा वजूद , उस खुदा की पाक दुनिया में , हम सबके लिए
संवेदनाओं की आस , अभी बाकी है

दिलों को रोशन कर रहे उस खुदा का करम , उसके बन्दों की पाकीज़ा रूहों से
संवेदनाओं की आस , अभी बाकी है


Thursday, 24 May 2018

संवेदनाओं में है नई गुनगुनाहट

संवेदनाओं में है नई गुनगुनाहट


संवेदनाओं में है नई गुनगुनाहट

चीरती अनैतिक रिश्तों का दंभ

बिखेरती चेहरों पर

विश्वास की मुस्कान

मानवता में संजोती /बिखेरती

इंसानियत की खुशबू

दिलों से दिलों को जोड़ती

अनजान रिश्तों को एक नाम देती

” जियो और जीने दो " का

मर्म बन उभरती

अश्रुओं से पूर्ण नेत्रों में

स्वप्न, साहस और कल्पना की

नई विरासत का संचार करती

जिन्दगी को “ अहा जिन्दगी “ की ओर

मुखरित कर जीने का भाव जगाती

दिलों की पीर का मर्म बन

इंसानियत के स्पर्श का समंदर जगाती

कभी किसी मासूम के रुदन में

कोमल स्पर्श बन मुस्कान हो जाती

कभी किसी के बिखरे सपनों में

एक आस बन उभर आती

“ दंभ “ को अपनी पावन मुस्कान से

पिघला देने का सामर्थ्य लिए

एक चिर - परिचित मुस्कान का

अंदाज बयॉ करते रूबरू हो जाती

“ संवेदना “ कोमल मन के

किसी कोने मैं स्वयं को पुष्ट करती

मानवता को मानवीयता का मर्म सिखाती

जीवन को जीने का मर्म होती “संवेदना “





चाँद तोड़ लायेंगे हम भी

चाँद तोड़ लायेंगे हम भी


चाँद तोड़ लायेंगे हम भी, हमें खुद प पर है यकीन
खुद को यूं ही , बुलंद नहीं किया हमने

खिलेंगे फूल मेरी राहों में भी , मुझे खुद पर है यकीन
यूं ही खुद पर , भरोसा नहीं किया हमने

उनकी स्याह रातों को , रोशन करेंगे हम एक दिन
यूं ही नहीं मुहब्बत से , सिल्रा नहीं लिया हमने

रोशन करेंगे हम भी , खुदा की इस कायनात को
खुद को उस खुदा की राह पर , यूं ही निसार नहीं किया हमने

खिला देंगे उनके गमगीन , चेहरे पर मुस्कान
इंसानियत की राह से, यूं ही रिश्ता नहीं बनाया हमने