न जाने किसकी दुआओं का , असर है मुझ पर
न जाने किसकी दुआओं का , असर है मुझ पर
समंदर की लहरों के बीच भी , किनारा नसीब हो जाता है मुझे
न जाने किसके करम से , रोशन हुई लेखनी मेरी
लिखता हूँ न जाने क्या , खुदा की इबादत हो जाती है
.
न जाने किसके आशीर्वाद से , लिख रहा हूँ मैं
सोचता हूँ कुछ पंक्तियों , ग़ज़ल हो जाती हैं वो
पाला हूँ दिल मैं प्यार , न जाने किसके करम से
दो मीठे बोल , चहरे पर मुस्कान दे जाती है
बो दिए हैं कुछ फूल , इस जहां में मैंने भी
इनकी खुशबू , जिन्दगी रोशन कर जाती है
मुस्कुरा रहा हूँ मैं , मुस्कराओ तुम भी
ये मुस्कराहट रोतों को भी , हँसा जाती है
चंद फूल इंसानियत के , खिलाओ तुम भी
ये हसरत हमें खुदा के , करीब ल्रे जाती है.
बीती बातों को दिल से , लगाकर न रखना
ये जिन्दगी की खुशियाँ , हमसे छीन ले जाती हैं
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