Wednesday 22 November 2017

न जाने किसकी दुआओं का असर है मुझ पर

न  जाने किसकी दुआओं का , असर है मुझ पर

न जाने किसकी दुआओं का , असर है मुझ पर
समंदर की लहरों  के बीच भी , किनारा नसीब हो जाता है मुझे

न जाने किसके करम से , रोशन हुई लेखनी  मेरी
लिखता  हूँ न जाने क्या , खुदा की इबादत हो जाती है
.
न जाने किसके आशीर्वाद से , लिख रहा हूँ मैं
सोचता हूँ कुछ पंक्तियों , ग़ज़ल हो जाती हैं वो 

पाला हूँ दिल मैं प्यार , न जाने किसके करम से
दो मीठे बोल , चहरे पर मुस्कान दे जाती है

बो दिए हैं कुछ फूल , इस जहां में मैंने भी 
इनकी खुशबू , जिन्दगी रोशन कर जाती है

मुस्कुरा रहा  हूँ मैं , मुस्कराओ तुम भी
ये मुस्कराहट रोतों को भी , हँसा जाती है

चंद फूल  इंसानियत के , खिलाओ  तुम भी
ये हसरत हमें खुदा के , करीब ल्रे जाती है.

बीती बातों को दिल से , लगाकर  न रखना
ये जिन्दगी की खुशियाँ , हमसे छीन ले जाती हैं


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