खुद को खुद में , टूँढने की कोशिश ( ग़ज़ल )
खुद को खुद में टूँढने की , कोशिश कर रहा हूँ मैं
इस उम्मीद से कि शायद , कुछ तो है मुझे
जिन्दगी की खुशबू का , शायद एहसास हो मुझमे
'खिलती हुई बहार शायद , कहीं आसपास हो मुझमे
गीत बनकर दिलों में उतर जाऊं, शायद ये ज़ज्बात हो मुझमें
या ग़ज़ल बनकर रोशन हो जाऊं , शायद ये औकात हो मुझमे
एक आस की लौ ले खुद को ढूँढने की , कोशिश कर रहा हूँ मैं
इस उम्मीद से कि शायद , कुछ बात हो मुझमें
लिखता हूँ इस उम्मीद से कि शायद , भीतर कहीं एहसास हों मुझमे
किसी के दर का चराग हो जाऊं, शायद ये आस हो मुझमें
फूलों की पंखुड़ियों को निहारता हूँ , इस उम्मीद से मैं
फूलों की खुशबू सा कहीं , शायद अंदाज़ हो मुझमें
रिश्तों की डोर को इस उम्मीद से , पकड़े रहता हूँ मैं
'रिश्तों को निभाने के शायद , कहीं जज्बात हों मुझमें
खुद को खुद में ढूँढने की , कोशिश कर रहा हूँ मैं
इस उम्मीद से कि शायद , कुछ तो है मुझमे
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