Wednesday, 22 November 2017

कुर्सी को खुदा समझने वाले (व्यंग्य)

कुर्सी को खुदा समझने वाले

कुर्सी को खुदा समझने वाले
आदर्श कहाँ जिया करते हैं

राजनीति को धर्म समझने वाले
राष्ट्र धर्म की बात कहाँ करते हैं

पल - पल पार्टी बदलने वाले
कुर्सी पर ही मरने वाले

पल - पल विचार बदलने वाले
राष्ट्र हित की बात कहाँ करते हैं

जनता को मूर्ख समझने वाले
वादों पर ही जीने वाले

कुर्सी के हित जीने वाले
सामाजिकता की बात कहाँ करते हैं

मन मैं जहर घोलने वाले
अपराध जगत के ये रखवाले

सरहद पर मरने वालों को
सलाम कहाँ किया करते हैं



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