Wednesday, 22 November 2017

हम गीतों में गुनगुनाएं चलो (ग़ज़ल)


हम गीतों में गुनगुनाएं चलो ( ग़ज़ल )

हम गीतों में गुनगुनाएं चलो
दो पल  को ही मुस्कराएं चल्रो

जिन्दगी को यूं न करें नासूर
किसी को दो पल  को हंसाएं चलो

गीतों मैं बंदगी का दिखे असर.
उस खुदा को मनाएं चलो  

किस्सा - ए - जिन्दगी को करें रोशन
इस जिन्दगी से रिश्ता बनाएं चलो

वक़्त ने दिए हैं गम बहुत
ग़मों को खुशियों का आइना दिखाएँ चलो

'छिलेंगे फू तेरी राहों में भी
किसी के सूने ऑँगन मैं दीपक जलाएं चलो 

ये आरजू हैं खुदा का करम हो हम पर.
किसी रोते को हंसाएं चलो

अनजान रिश्तों में भी ढूंढें प्यार की खुशबू
प्यार का एक खुशनुमा समंदर सजाएं चलो

हम गीतों में गुनगुनाएं चलो
दो पल  को ही मुस्कराएं चल्रो

जिन्दगी को यूं न करें नासूर
किसी को दो पल  को हंसाएं चलो



न जाने किसकी दुआओं का असर है मुझ पर

न  जाने किसकी दुआओं का , असर है मुझ पर

न जाने किसकी दुआओं का , असर है मुझ पर
समंदर की लहरों  के बीच भी , किनारा नसीब हो जाता है मुझे

न जाने किसके करम से , रोशन हुई लेखनी  मेरी
लिखता  हूँ न जाने क्या , खुदा की इबादत हो जाती है
.
न जाने किसके आशीर्वाद से , लिख रहा हूँ मैं
सोचता हूँ कुछ पंक्तियों , ग़ज़ल हो जाती हैं वो 

पाला हूँ दिल मैं प्यार , न जाने किसके करम से
दो मीठे बोल , चहरे पर मुस्कान दे जाती है

बो दिए हैं कुछ फूल , इस जहां में मैंने भी 
इनकी खुशबू , जिन्दगी रोशन कर जाती है

मुस्कुरा रहा  हूँ मैं , मुस्कराओ तुम भी
ये मुस्कराहट रोतों को भी , हँसा जाती है

चंद फूल  इंसानियत के , खिलाओ  तुम भी
ये हसरत हमें खुदा के , करीब ल्रे जाती है.

बीती बातों को दिल से , लगाकर  न रखना
ये जिन्दगी की खुशियाँ , हमसे छीन ले जाती हैं


खुद को खुद में ढूँढने की कोशिश (ग़ज़ल)

खुद को खुद में , टूँढने की कोशिश ( ग़ज़ल )

खुद को खुद में टूँढने की , कोशिश कर रहा हूँ मैं
इस उम्मीद से कि शायद , कुछ तो है मुझे

जिन्दगी की खुशबू का , शायद एहसास हो मुझमे
'खिलती हुई बहार शायद , कहीं आसपास हो मुझमे

गीत बनकर दिलों में उतर जाऊं, शायद ये ज़ज्बात हो मुझमें 
या ग़ज़ल बनकर रोशन हो जाऊं , शायद ये औकात हो मुझमे

एक आस की लौ ले खुद को ढूँढने की , कोशिश कर रहा हूँ मैं
इस उम्मीद से कि शायद , कुछ बात हो मुझमें 

लिखता  हूँ इस उम्मीद से कि शायद , भीतर कहीं एहसास हों मुझमे
किसी के दर का चराग हो जाऊं, शायद ये आस हो मुझमें

फूलों की पंखुड़ियों को निहारता हूँ , इस उम्मीद से मैं
फूलों की खुशबू सा कहीं , शायद अंदाज़ हो मुझमें

रिश्तों की डोर को इस उम्मीद से , पकड़े रहता हूँ मैं
'रिश्तों को निभाने के शायद , कहीं जज्बात हों मुझमें

खुद को खुद में ढूँढने की , कोशिश कर रहा हूँ मैं
इस उम्मीद से कि शायद , कुछ तो है मुझमे


कुर्सी को खुदा समझने वाले (व्यंग्य)

कुर्सी को खुदा समझने वाले

कुर्सी को खुदा समझने वाले
आदर्श कहाँ जिया करते हैं

राजनीति को धर्म समझने वाले
राष्ट्र धर्म की बात कहाँ करते हैं

पल - पल पार्टी बदलने वाले
कुर्सी पर ही मरने वाले

पल - पल विचार बदलने वाले
राष्ट्र हित की बात कहाँ करते हैं

जनता को मूर्ख समझने वाले
वादों पर ही जीने वाले

कुर्सी के हित जीने वाले
सामाजिकता की बात कहाँ करते हैं

मन मैं जहर घोलने वाले
अपराध जगत के ये रखवाले

सरहद पर मरने वालों को
सलाम कहाँ किया करते हैं



Saturday, 18 November 2017

मानुषिक प्रवृत्तियों की निवृति में है आनंद

मानुषिक प्रवृत्तियों की निवृति में हैं आनंद

मानुषिक प्रवृत्तियों की निवृति में हैं आनंद
सुख - दुःख का मंथन और जीवन का अमृत

संवेदनाएं खोलतीं  सुख के द्वार
स्वयं पर कितना विश्वास और कितना आत्मविश्वास

समृद्धि और सुख का भीषण द्वंद
कर्म भी सुख का सूचक 

समर्पण और प्रेम , सुख का पर्याय
'तलाशिये सुख का एक बीज , अपने प्रयासों से

जितना बड़ा संघर्ष , उतना बड़ा सुख
सुख की सीढ़ियों का अंत नहीं

'फिर भी तलाश , एक मुट्ठी भर सुख की
है यहीं कहीं , हमारे आसपास

हमारी कोशिशों में , हमारे प्रयासों में
संवेदनाओं में , हमारे मानव प्रेम में

आओ खोजें उस सुख को , उस असीम सुख को
हमारे प्रयासों , हमारी कोशिशों की परिणति के रूप में




स्वच्छता ही सेवा है


स्वच्छता ही सेवा है

स्वच्छता ही सेवा है
आओ इसे अपनाएँ

गली और मुहल्लौं को
आओ रौशन बनाएं

गांधीजी के इस  सपने को
आओ अमली जामा पहनाएं

स्वच्छता ही सैव हैं
आओ इसे अपनाएँ

स्वच्छता की पावनता
हमारे स्वच्छ कर्मों में 

स्वच्छता की गूँज से
मनी - गमी महकाएं

स्वच्छता ही सेवा है 
आओ इसे अपनाएँ

आओ स्वच्छ भारत का
सपना साकार करें

प्रकृति की पावनता
आओ बरकरार रखें

स्वच्छता ही सेवा  है
आओ इसे अपनाएँ

स्वच्छता एक विचार है.
तन की पावनता का

स्वच्छता एक नारा नहीं
स्वच्छता पावनता है

स्वच्छता ही सैवा है
आओ इसे अपनाएँ