Friday, 6 November 2015

तेरे दर पर आये साईं

तेरे दर पर आये साईं हम भिखारी बनकर

तेरे दर पर आये साई , हम भिखारी बनकर
भर दे तू झोली , सबकी साईं दाता बनकर

बेऔलादों वालों को तू , औलाद देना
खाली आशियों को साईं , खुशियों से भर देना

हम जानते हैं ,तू है कारसाज बड़ा
आये जो दर पर तेरे , खाली न कोई खड़ा

डूबती नैया को साईं , पार लगा देना
दीन -- दुखियों को साईं , खुशियाँ अपार देना

हम तो हैं बालक तेरे , हम पर हो एतबार तुझे
जी रहे हैं तेरे दम से , तुझ पर भरोसा है हमें

किस्मत हमारी साईं , चमके तेरे करम से
सोते जागते साईं नाम , तेरा हो लब पे

ख्वाहिश है साईं , दीदार तेरा हो हमें
तेरे बन्दों की , सेवा से नवाज दे  हमें

गिर जो जाएँ तो , संभालना मेरे साईं
तेरे नाम के सहारे , जिन्दगी कटे मेरे साईं

तेरे दर पर आये साईं , हम भिखारी बनकर
भर दे तू झोली , सबकी साईं दाता बनकर






किसे मैं अपना कहूं और किसे कहूं बेगाना

किसे मैं अपना कहूं और किसे कहूं बेगाना

किसे मैं अपना कहूं और किसे कहूं बेगाना ऐ मेरे खुदा
इस जहां के हर एक बन्दे में तेरा नूर नजर आता है मुझे

मैं जो भी लिखूं ऐ मेरे खुदा, पाकीजगी अता करना माला उसमे
हर एक लफ्ज़ में तेरा एहसास शामिल हो ऐ मेरे खुदा

मेरे इम्तिहां न लेना , अपना शागिर्द करना मुझको
आँखें खुली हो या हो बंद , तेरी इबादत का एहसास करा मुझको

तेरी इबादत को अपना मजहब कर लूं ऐ मेरे खुदा
जियूं तो तेरे नाम से, मरूं तो लब पर तेरा नाम हो ऐ मेरे खुदा

इल्म-ए --- इबादत से नवाज़ मुझको ऐ मेरे खुदा
आशियाँ मेरा तेरे करम से रोशन हो ऐ मेरे खुदा

तेरे इक इशारे पर दो जहां को ठुकरा दूं ऐ मेरे खुदा
मरने पर भी इबादत ए जन्नत का आसरा नसीब हो मुझको ऐ मेरे खुदा

मैं तेरी इबादत को अपनी मकसदे जिन्दगी कर लूं ऐ मेरे खुदा
मेरी इस आरज़ू को करम अत्ता करना माला

हो जाऊं मैं आदिल, मेरा नूर आफताब सा हो रोशन
मेरी किस्मत को आब--ए---आइना की तरह कर रोशन

मुझे भी चैन, दो पल का आराम नसीब हो ऐ मेरे खुदा
आहिस्ता ही सही , मेरा भी इकबाल बुलंद हो ऐ मेरे खुदा

आलम ये है कि मैं दो पत्र भी तेरे बगैर जी न सकूं
 इबादते--जूनून को अपने करम से परवान चढ़ा ऐ मेरे खुदा

मेरे क़दमों के निशाँ , दूसरों की जिन्दगी का सबब हो जाएँ
कुछ इस तरह से बुलंद कर किस्मत मेरी ऐ मेरे खुदा










Thursday, 5 November 2015

कुछ पाने की तमन्ना

कुछ पाने की तमन्ना

कुछ पाने की तमन्ना , तसव्वुर से क्‍यों कर गुजरे
चलो हकीकत को , मंजिल का आशियाँ करें

गम क्या तुझको, गर मंजिल तेरा नसीब नहीं
कोशिशों पर यकीन, तेरे नसीब का हो हिस्सा

जिन्दगी रोशन करने के लिए, रात के दो पल ही काफी हैं
दिन को रात कहने की जिद, करते हैं लोग क्यों

गले का हार हो जाओ तुम, दो पल के लिए ही सही
इस दिल को तेरे पहलू की आरज़ू , खता तो नहीं

बेगाना समझ यूं मुझसे , मुंह न फेर सनम
इस दिल को तेरी आरज़ू, कोई गुनाह तो नहीं

तेरे पहलू में गुजरें मेरी सुबह और शाम ये आरजू है मेरी
यूं ही नहीं किया मैंने , तुझे अपनी जिन्दगी में शामिल

तेरी इबादत मेरी जिन्दगी का मकसद हो जाए
यूं ही नहीं इश्क को इबादते--खुदा कहते हैं

कुछ पाने की तमन्ना , तसव्वुर से क्‍यों कर गुजरे
चलो हकीकत को , मंजिल का आशियाँ करें

गम क्या तुझको, गर मंजिल तेरा नसीब नहीं
कोशिशों पर यकीन, तेरे नसीब का हो हिस्सा







वक़्त के दरिया के पार जो उतरना जाने

वक़्त के दरिया के पार जो उतरना जाने 

वक़्त के दरिया के पार जो उतरना जाने 
मंजिल उसको नसीब होती है

इंसानियत को जो अपना मजहब माने
जिन्दगी उसको नसीब होती है

चार वक़्त की जो नमाज़ करना जाने 
इबादत उसको नसीब होती है

दूसरों के गमों को जो अपना माने
जिन्दगी उसको नसीब होती है

वक़्त की पाकीजगी में जो  ढलना  जाने 
शोहरत उसको नसीब होती है

दूसरों के दर्दे - गम को जो अपना माने
जिन्दगी उसको नसीब होती है

वक़्त की नाव में बैठ, जो पार उतरना जाने 
अमानते- इल्म उसको नसीब होती है

दूसरों के गम में जो शरीक हो . जो खुद के ग॒मों को भूले
जिन्दगी उसको नसीब होती है












जिनकी खुद की किस्मत रोशन नहीं होती

जिनकी खुद की किस्मत , रोशन नहीं होती
क्या वे किसी का , सहारा नहीं होते

जिनकी किस्मत में,  सितारे नहीं होते
क्या उनके जीवन में  , किनारे नहीं होते

जिनकी खुद की किस्मत , दर्दे - ग॒मों का साया है
क्या उनसे किसी की किस्मत , रोशन नहीं होती

ये दुनिया दर्दे - गमों का , समंदर है
चलते रहने से क्या  , दुनिया रोशन नहीं होती

सितारे चाँद को देखकर
यूं रोया नहीं करते

करते हैं खुद को बुलंद

यूं निराश हुआ नहीं करते

जुदाई के गम में
खुद को यूं , रुलाया नहीं करते

रोशन करते हैं , औरों की किस्मत
खुद को यूं , मिटाया नहीं करते

किसी की तरक्की को देखकर
यूं दिल को जलाया नहीं करते

बिछाते हैं फूल दूसरों की राहों में
खुद को यूं सताया नहीं करते


बेहोशी के आल्रम में
यूं रोशन दीपक हुआ नहीं करते

पीते हैं वो
जो जिन्दगी को जिन्दगी समझा नहीं करते












Wednesday, 4 November 2015

पूछूं पता किससे तेरा, कोई नहीं यहाँ है मेरा

पूछूं पता किससे तेरा, कोई नहीं यहाँ है मेरा

पूछूं पता किससे तेरा, कोई नहीं यहाँ है मेरा
ये दुनिया तेरी  मायाजाल है , कोई नहीं इंसान यहाँ

जो चीरहरण का हिस्सा हैं, उन्हें तेरा पता क्या मालूम होगा
जो  बहा रहे हैं खून, उनका तुझसे क्या कोई नाता होगा

रिश्तों को जो कर रहे हैं तार – तार, वो बता सकेंगे क्या ठिकाना तेरा
धर्म की राजनीति करने वालों को , क्या तेरे दर का पता होगा

अप्राकृतिक कृत्यों में लिप्त, मानव चरित्रों को क्या तुझसे कोई सरोकार होगा
इस लोक को जो न स्वर्ग समझे, परलोक उनका क्या सार्थक होगा

आधुनिक विचारों से पोषित चरित्रों को, सामाजिकता से क्या सरोकार होगा
तिलांजलि दे रहे आदर्शों को जो चरित्र, उनका संस्कारों से क्या कोई नाता होगा

कुविचारों का कर रहे जो समर्थन, क्या उनका आदर्शों से कोई लगाव होगा
संस्कृति जिनके जीवन में मायने नहीं रखती , उनका जीते जी क्या हश्र होगा

सात्विक विचारों में नहीं रूचि उनकी, उनके जीवन का अंत कैसा होगा
मर्यादाओं में बंधकर रहना जिनको मंज़ूर नहीं , उनके जीवन में क्या खुशबुओं का कोई मंज़र होगा

अभिनन्दन की राह जिनको नहीं भाती, उनका जीवन क्या उत्कर्ष से भरा होगा
इबादत जिनके दैनिक जीवन का हिस्सा नहीं, क्या उन्हें खुदा से कोई सरोकार होगा

आत्मीयता जिनके चरित्र को नहीं भाती , क्या सत्मार्ग से उनको कोई सरोकार होगा
संवेदनहीनता को बना लिया जिन्होंने अपने जीवन का सबब, क्या मानवता उनके जीवन का धर्म होगा

पूछूं पता किससे तेरा, कोई नहीं यहाँ है मेरा
ये दुनिया तेरी  मायाजाल है , कोई नहीं इंसान यहाँ

जो चीरहरण का हिस्सा हैं, उन्हें तेरा पता क्या मालूम होगा
जो  बहा रहे हैं खून, उनका तुझसे क्या कोई नाता होगा