प्रश्न
प्रश्न मन में
हर -पल हर -क्षण
उठता है कि इन
माया के झंझावातों से
निजात पाऊं कैसे
कैसे बाहर आऊँ
इन खेलों से
जो दिन-प्रतिदिन
की जिन्दगी का
एक अहम् हिस्सा
बन गए हैं
कैसे और किससे कहूं
कैसे और किससे बयाँ करूं
अपनी अंतरात्मा
की पीर
किससे बयाँ करूँ
अपनी आत्मा के राज़
चाहता क्या मैं
और कर क्या रहा हूँ मैं
इन मायाजालों में उलझा
अपने अस्तित्व की लड़ाई
लड़ रहा हूँ मैं
मुझे खोने और पाने का
गम नहीं है
न ही मैं
कर्तव्यविमुख प्राणी हूँ
इस धरा पर
कर्तव्य, भावनायें
मोहपाश, बंधन
आकर्षण, त्याग
समर्पण
इत्यादि इत्यादि से
ऊपर उठना चाहता हूँ
मैं भागता नहीं हूँ
और न ही भागना चाहता हूँ
मैं जीवन में स्थिरता चाहता हूँ
स्थिरता
आप पूछ बैठेंगे
कि किस तरह की स्थिरता
स्थिरता जो मन में
शान्ति स्थापित कर दे
स्थिरता जो सुख – दुःख के
भवसागर से पार कर दे
स्थिरता जो त्याग का
पर्याय है
स्थिरता जो आत्मा के
विकास का आधार है
स्थिरता जो इस नश्वर
जीवन से ऊपर उठ
कुछ और सोचने को
बाध्य कर दे
स्थिरता जो जाती , धर्म, वेश और
राष्ट्रीयता से ऊपर उठ
मानव से मानव के
विकास से सुसज्जित हो
दैनिक कार्यकलापों से ऊपर उठ
उस ऊँचे सिंहासन की ओर बढ़ने की
जो मानव को मानव से ऊपर
उठा सके और
अग्रसर कर सके
उस दिशा की ओर
जहां पहुँच
मानव मोक्ष के योग्य हो
देव तुल्य हो
बंधन मुक्त उन्मुक्त गगन में
विचरण करता हो
स्थिरता जो मानव को
देवतुल्य अनुभूति
प्रदान करती है
स्थिरता जो
प्रकाशमय दीपक द्वारा
अन्धकार को दूर कर
उजाले की ओर प्रस्थित करती हो
स्थिरता जो वाणी का विस्तार हो जाए
स्थिरता जो त्याग की मूर्ती बन जाए
मानव जीवन को संवार सके
स्थिरता जो जीने का
आधार हो जाए
स्थिरता जो गुरु के
पूज्य चरण कमलों
के स्पर्श से देदीप्यमान हो जाए
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