कुछ चंद एहसास
काट कर रख दिए हैं पर उसने मेरे
चाह कर भी उड़ नहीं सकता यारो
गर रजा है उसकी मेरे न उड़ने में
तो पर
पाकर भी क्या करूंगा यारों |
खिलते हैं फूल घर में उसी के
जिन्हें फूलों से प्यार है
फूलों बगैर जिन्दगी
होती
वीरान है |
इस दुनिया के खेल भी अजब निराले
हैं
कहीं खुशियों की परवाह नहीं
कहीं खुशियों के लाले हैं
कहीं फिकता है खाना सड़कों पर
और
कहीं एक- एक
टुकड़े रोटी के लाले हैं |
बिन पंखों के जी रहा हूँ मैं
कटे पंखों के सहारे जी रहा हूँ मैं
फिर भी दूर आसमान में
बसेरा
बनाने की है चाहत मेरी |
पन्नों पर शब्दों को तराशने का
दौर अब भी है जारी
ये वो
शै है
जिसकी
कोई स्याह रात नहीं
No comments:
Post a Comment