Friday, 6 January 2012

बदरी

बदरी

प्रकृति ने ली अंगडाई है
चहुँ ओर बदरी छाई है
ग्रीष्म को बिदाई मिल रही
चहुँ और बूँदें पड़ रही

करो वर्षा का आगमन
करो बूंदों से आचमन  
प्रकृति की छटा  निराली हो रही
चहुँ और बूँदें पड़ रही

हम बादलों को चूम लें
पंछी ये गीत गा रहे
इस अवसर को हम न गवाएं
बादलों का साथ निभाएं

चहुँ और हरियाली खिलाएं
आओ हम मिल पेड़ लगाएं
कितना सुन्दर है ये आलम
हो रही चहुँ और रिमझिम

कोयल की कुक प्यारी
खिल रही है क्यारी-क्यारी
प्रकृति के हम ऋणी हैं
जिसने चहुँ और शांति दी है

बच्चों के भीगे तन-मन
झूमें सबके तन-मन
ये वर्षा का आगमन
प्रक्रति को करो नमन



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