Sunday, 22 January 2012

चलने दो जितनी चले आंधियां

चलने दो जितनी चले आंधियां
चलने दो जितनी चले आंधियां
आँधियों से डरना क्या
मुस्कराकर ठोकर मारो
वीरों मन में भय कैसा
चलने दो जितनी चले आंधियां
तूफानों की चाल जो रोके
पल में नदियों के रथ रोके
वीर धरा के पवन पुतले
चलने दो जितनी चले आंधियां
पाल मन में वीरता को
झपटे दुश्मन पर बाज सा
करता आसान राहें अपनी
तुझे हारने का दर कैसा
चलने दो जितनी चले आंधियां
भारत माँ के पूत हो प्यारे
लगते जग में अजब निराले
करते आसाँ मुश्किल सारी
तुझे पतन का भय कैसा
चलने दो जितनी चले आंधियां
पड़े पाँव दुश्मन की छाती पर
चीरे सीना पल भर में
थर – थर काँपे दुश्मन
या हो कारगिल , या हो सियाचिन
चलने दो जितनी चले आंधियां
पायी है मंजिल तूने प्रयास से
पस्त किये दुश्मन के हौसले
फ़हराया तिरंगा खूब शान से
नमन तुझे ए भारत वीर
चलने दो जितनी चले आंधियां






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