कहाँ से छेड़ूँ फ़साना
, कहाँ तमाम करूँ
कहाँ से छेड़ूँ फ़साना ,
कहाँ तमाम करूँ
टूटा था दिल वहां से,
या संभला था दिल जहां से
कहाँ से छेड़ूँ फ़साना
, कहाँ तमाम करूँ
संवरे थे मेरे सपने
वहां से, या बिखरे थे वहां से
कहाँ से छेड़ूँ फ़साना
, कहाँ तमाम करूँ
जुड़ी थी यादें वहां
से, या टूटे थे रिश्ते जहां से
कहाँ से छेड़ूँ फ़साना
, कहाँ तमाम करूँ
जब रोशन हुआ था दिल
वहां से, या तनहा हुआ था जहां से
कहाँ से छेड़ूँ फ़साना
, कहाँ तमाम करूँ
चंद कदम चले थे वहां
से, या जुदा हो गए थे जहां से
कहाँ से छेड़ूँ फ़साना
, कहाँ तमाम करूँ
रोशन हुआ था मुहब्बत
का कारवाँ वहां से, या बिखरे थे सपने वहां से
कहाँ से छेड़ूँ फ़साना
, कहाँ तमाम करूँ
जब पहली बार हम मिले
थे वहां से, या अंतिम दीदार हुए थे वहां से
कहाँ से छेड़ूँ फ़साना
, कहाँ तमाम करूँ
जब रोशन हुई थी कलम
वहां से, या उस खुदा की इनायत का कारवाँ रोशन हुआ वहां से
कहाँ से छेड़ूँ फ़साना
, कहाँ तमाम करूँ
कहाँ से छेड़ूँ फ़साना
, कहाँ तमाम करूँ
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