Friday, 8 January 2021

मुझे वो अपना गुजरा ज़माना याद आया

 

मुझे वो अपना गुजरा ज़माना याद आया

 

मुझे वो अपना गुज़रा ज़माना याद आया

वो बचपन की यादें, वो रूठना मनाना याद आया

 

बेरों की वो झुरमुट , वो नदी का किनारा

काँधे पर स्कूल का बस्ता, वो लड़ना  लड़ाना याद आया

 

खिल जाती थीं बांछें , जब जेब में होती थी चवन्नी

वो मन्नू हलवाई की दूकान , वो कुल्फी वाला याद आया

 

ठाकुर साहब के बाग़ से , छुपकर चुराए वो आम

बापू की डांट डपट, माँ का मुझको बचाना याद आया

 

गिल्ली डंडे का वो खेल, कंचे बंटों की खनखन

कभी हारकर रोना  , कभी जीतकर खुश होना याद आया

 

त्यौहार के आने की ख़ुशी, मेले की रौनक

वो गुड्डे गाड़ियों से सजा बाज़ार, वो टिकटिक करता बन्दर याद आया

 

संतू की चाची का पान खाकर, यहाँ वहां पिचपिच करना

मंदिर की घंटी का स्वर , वो मंदिर का प्रसाद याद आया

छुपान  - छुपाई का वो खेल, कैरम पर नाचती गोटियाँ

वो पढ़ाई को लेकर आलस, वो फेल होते होते बचना याद आया

 

तुम यहीं कहीं मेरे आसपास हो

                                                     तुम यहीं कहीं मेरे आसपास हो

 

तुम यहीं कहीं

मेरे आसपास हो

चिर  - परिचित सुगंध

का एहसास

 

लगा अभी  - अभी

तुम मुझे छूकर

महसूस कर रहे हो

 

मैं यहीं हूँ

तुम्हारे आसपास

मुझे फिर से एक बार छुओ न

आलिंगन करो न

 

वो तुम्हारी

प्यार भरी झप्पी

वो बार  - बार

मुझे छूना

 

पीछे से आकर

बाहों में भर लेना

और धीरे से

कान में कहना

“आई लव यू डार्लिंग”

 

तुम्हें तो याद ही होगा

हमारा हनीमून

पैसों की तंगी के कारण

हमने घर पर ही

हनीमून सेलिब्रेट किया था

 

 

ख़ुशी और गम के

सारे पल हमने

हंसकर बिताये

वो यादें वो हंसी पल

 

मेरी यादों का

हमसफ़र हो गए

उन्हीं यादों का सहारा लिए

तुम्हें अपने आसपास

महसूस कर रही हूँ

 

मैं अकेली, तनहा नहीं हूँ

तुम हो न

तुम्हारी यादें

तुम्हारा एहसास

सब कुछ तो है ...........

Tuesday, 5 January 2021

कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

 

कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

 

कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

टूटा था दिल वहां से, या संभला था दिल जहां से

 

कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

संवरे थे मेरे सपने वहां से, या बिखरे थे वहां से

 

कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

जुड़ी थी यादें वहां से, या टूटे थे रिश्ते जहां से

 

कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

जब रोशन हुआ था दिल वहां से, या तनहा हुआ था जहां से

 

कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

चंद कदम चले थे वहां से, या जुदा हो गए थे जहां से

 

कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

रोशन हुआ था मुहब्बत का कारवाँ वहां से, या बिखरे थे सपने वहां से

 

कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

जब पहली बार हम मिले थे वहां से, या अंतिम दीदार हुए थे वहां से

 

कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

जब रोशन हुई थी कलम वहां से, या उस खुदा की इनायत का कारवाँ रोशन हुआ वहां से

 

कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

 

बिखरना नहीं है तुझको ..........जिन्दगी

 

बिखरना नहीं है तुझको ..........जिन्दगी

 

बिखरना नहीं है तुझको , संभलना है जिन्दगी

गिरना नहीं  है तुझको, उठना है जिन्दगी

 

आंसुओं में डूबना नहीं , चहचहाना है जिन्दगी

टूटना नहीं  है तुझको , संवरना है जिन्दगी

फिसलना नहीं है तुझको, ठहरना है जिन्दगी

चाहतों में उलझना नहीं है तुझको, मुक्त होना है जिन्दगी

 

घबराना नहीं है तुझको, संघर्ष करना है जिन्दगी

भटकना नहीं है तुझको, संवरना है जिन्दगी

 

डरना नहीं है लहरों से , पार जाना है जिन्दगी

चाँद तारों की आरज़ू नहीं, एक आसमां सजाना है जिन्दगी

 

बिखरने नहीं देना है आशाओं को, सपनों का समंदर सजाना है जिन्दगी

सपनों को बिखरने नहीं देना है, खुशनुमा आशियाँ रोशन करना है जिन्दगी

 

चीरकर अँधेरा तुझको , आगे बढ़ना है जिन्दगी

खिलाना है प्यार का उपवन, रोशन करना है जिन्दगी

 

पीर मिटाना है खुदा के बन्दों की, इंसानियत का ज़ज्बा जगाना है जिन्दगी

खुदा की राह पर मिट जाना है , उसका शागिर्द हो जाना है जिन्दगी

 

एक दिन अचानक

 

एक दिन अचानक

 

एक दिन अचानक बदल गयी थी जिन्दगी मेरी

कलम के दीदार से रोशन हो गयी थी जिन्दगी मेरी

 

“सत्य” विषय पर चंद पंक्तियों से हुआ था आगाज़

फिर न रुकी , बढ़ चली बढ़ चली कलम मेरी

 

भावनाओं का एक समंदर हुआ रोशन

विचारों को दिशा मिली , रोशन हो गयी जिन्दगी मेरी

 

संवेदनाओं की बह निकली अनवरत धारा

मानवतावादी विचारों से परिपूर्ण हो गयी जिन्दगी मेरी

 

बदल गए मायने और मकसद भी जिन्दगी के

विचारों से पोषित एक कलम ने , बदल दी जिन्दगी मेरी

 

सिसकती साँसों का साथ लिए जी रहे थे रिश्ते

रिश्तों का इन्द्रधनुष , रोशन करने की , पूरी हुई ख्वाहिश मेरी

 

दुनिया की भलाई में करता रहा खुशियों की तलाश

एक अदद कला ही हुई खैरख्वाह जिन्दगी की मेरी

 

विचारों का एक खूबसूरत समंदर हुआ रोशन

सज गया एक कारवाँ , रचनाओं का मेरी

 

किस्से बयाँ हुए दिल की गहराइयों से

विचारों का एक आसमां हुआ रोशन , कलम से मेरी

 

हुए सभी सपने साकार , एक कलम के जोर से

पीर दिल की मिट गयी , रोशन हुई जिन्दगी मेरी

लम्हा - लम्हा

 

लम्हा  - लम्हा

 

लम्हा  - लम्हा दर्ज होती जिन्दगी

कहीं सुबह , कहीं शाम होती जिन्दगी

कहीं सावन की फुहार , कहीं दर्द का विस्तार होती जिन्दगी

लम्हा  - लम्हा दर्ज होती जिन्दगी

 

आंसुओं में डूबती , तब दर्द का एहसास होती जिन्दगी

आंखों में चमक, तब ख़ुशी का दीदार होती जिन्दगी

लहरों से टकराती , तब मंजिल का आगाज़ होती जिन्दगी

लम्हा  - लम्हा दर्ज होती जिन्दगी

 

किसी का दर्द  चुराती, तब जीने का एहसास होती जिन्दगी

किसी के गम को ख़ुशी में बदलती, तब खुदा का दीदार होती जिन्दगी

पीर दिलों की मिटाती , तब जीने का आगाज़ होती जिन्दगी

लम्हा  - लम्हा दर्ज होती जिन्दगी

                                                   

कब कोशिशों का परवान चढ़ती , तब जीतने का एहसास होती जिन्दगी

किसी को गम में डुबोती, तब खुदगर्ज़ होती जिन्दगी

आँखों में आशा की चमक जगाती, तब जीने का मकसद होती जिन्दगी

किसी गिरते को संभालती , तब जीवन का आधार होती जिन्दगी

 

लम्हा  - लम्हा दर्ज होती जिन्दगी

लम्हा  - लम्हा दर्ज होती जिन्दगी

लम्हा  - लम्हा दर्ज होती जिन्दगी

लम्हा - लम्हा दर्ज होती जिन्दगी