Sunday, 18 October 2020

सब यहीं धरा रह जाएगा

                                                    सब यहीं धरा रह जाएगा

 

सब यहीं धरा रह जाएगा

तू साथ क्या ले जाएगा

 

फिर रौब किस बात का

न सिकंदर रहा न अकबर रहा

 

क्या कार क्या मकान क्या

अच्छी चल रही दुकान क्या

 

क्यों भागता तू फिर रहा

आखिर अंत क्या तू पाएगा

 

मन से तू राग द्वेष छोड़

हो सके तो सबको गले लगा

 

चार दिन की जिन्दगी

तू साथ क्या ले जाएगा

 

रिश्तों से पीछा छोड़कर

कहाँ तक तू भाग पायेगा

 

यूं ही अकेला रह जाएगा

यूं ही अकेला मर जाएगा

 

अपनों का दामन छोड़ न

रिश्तों से मुंह तू मोड़ न

 

पीछे जो मुड़कर देख लेगा

हाथ न कुछ आएगा

 

राम क्या अल्लाह क्या

सभी ने हमको एक राह दी

 

तू धर्म के नाम पर लड़ रहा

क्या ख़ाक मोक्ष तू पायेगा

 

क्यूं करे तू हिन्दू मुसलमां

क्यूं करे तू तेरा मेरा

 

रिश्तों की जो लड़ी न बनी तो

बिखर  - बिखर रह जाएगा

 

जो सत्य का आँचल न हो तो

कैसा जीवन तू पायेगा

 

आध्यात्म की जो छाँव न हो

भटक – भटक रह जाएगा

 

पीर दिल की न मिटेगी

तड़प  - तड़प रह जाएगा

 

सोच अपने अस्तित्व की तू

वर्ना यहीं सड़ जाएगा

 

राह जीवन की संवार तू

वर्ना जंगली हो जाएगा 

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