Friday, 3 May 2019

क्यूं कर हो इंसानियत और मानवता तार – तार


क्यूं कर हो इंसानियत और मानवता तार – तार

क्यूं कर हो इंसानियत और मानवता तार – तार
दिल के किसी कोने में इंसानियत का ज़ज्बा जगाएं चलो

क्यूं कर सिसकती साँसों का समंदर हो जाए ये जिन्दगी
किसी की ग़मगीन साँसों पर मुस्कराहट का मरहम लगाएं चलो

बिखरते  - टूटते रिश्तों की दुनिया में उलझ कर रह गयी ये दुनिया
मुहब्बत का एक कारवाँ रोशन कर रिश्तों का एक समंदर सजाएं चलो

खुदा की हर एक कायनात से मुहब्बत का रिश्ता बनाएं चलो
खुदा के बन्दों को मुहब्बत का फ़लसफ़ा समझाएं चलो

करूं कर बुझ जाए किसी के घर का चराग वक़्त – बेवक्त
किसी के सूने आँगन में आशा का दीपक जलाएं चलो

क्यूं कर यूं ही बीत जायें ये जिन्दगी के हसीं पल
अपनी हर पल की कोशिशों को जिन्दगी की अमानत बनाएं चलो

क्यूं कर टुकड़े  - टुकड़े बिखर जायें उम्मीदें और चाहतें
अपनी कोशिशों से जिन्दगी का हर एक पल खूबसूरत बनाएं चलो

क्यूं कर बिखर जाएँ किसी की जिन्दगी के सपने
अपनी कोशिशों से किसी के सपनों का आशियाँ सजाएं चलो




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