क्षणिकाएं
ग्रीष्म ऋतू की पीड़ा
शाखें भी समझती हैं
और
वसंत उनके आँगन
दस्तक देगा एक दिन
इस आस में वे जिन्दा रहती
हैं
क्योंकि तुम
अवसर नहीं
संभावना हो
मेरे जीवन की
मुझे मालूम है
मेरी कोशिशें , मेरे प्रयास
आज नहीं तो कल
मेरी मंजिल का हमसफ़र हो
करेंगे रोशन
एक
दिन मुझको
एक उम्र से मैं
अपने साए में
खड़ा हूँ
इस सोच के साथ
कि
आज नहीं तो कल
ये मानव जागेगा
एक नई
सुबह का साथ लिए
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