खुद की पहचान खोजता
खुद की पहचान खोजता
खोया हुआ आदमी
अंधेरों में , उजालों में
खुद को टटोलता आदमी
अपनी ही आदमियत को
खोज रहा आदमी
खुशियों की गलियों में
गामों के समंदर में
आदमी की खोज में
भटक रहा आदमी
खुद के एहसास को
और कुछ आसपास को
अंतर्मन के विश्वास को
टोह रहा आदमी
दूसरों की पीर को
आँखों से बहते नीर को
बीतती हर शाम को
'टौह रहा आदमी
वो बचपन की गलियों को
मित्रों की टोली को
रिश्तों के बंधन को
खोज रहा आदमी
रिश्तों में विश्वास को
किनारे की आस को
जिन्दगी की नाव को
खींच रहा आदमी
गीतों में राग को
इबादत मैं एतबार को
जीवन की प्यास को
तरस रहा आदमी
विद्यालय में शिक्षा को
पुस्तकों में संस्कार को
देवालय में भगवान् को
खोज रहा आदमी
मित्रों के बीच दोस्ती को
गुरुओं में देव को
रिश्तों में त्याग को
टोह रहा आदमी
खुद की पहचान खौजता
खौया हुआ आदमी
अंधेरों मैं , उजालों में
खुद को टटोलता आदमी
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