Sunday, 17 June 2012

मानव मन

     मानव मन
मानव मन
एक पंछी की भाँति
उड़ता दूर गगन में
कभी ना ठहरे
एक डाल पर
रैन बसेरा
बदल  – बदल कर
बढ़ता जीवन पथ
चाह उसे
उन्मुक्त गगन की
चंचल मन
स्थिरता ठुकराए
मन उसका
विस्तृत – विस्तृत
चाल भी है
उसकी मतवाली
संयमता , आदर्श  , अनुशासन
सभी उसके मन पटल पर
अमित छाप छोड़ते
फिर भी
अस्तित्व की लड़ाई
कर्मभूमि से
पलायन न करने का
उसका स्वभाव
प्रेरित करता
लड़ो , जब तक जीवन है
संघर्ष करो
एक डाल पर बैठकर
अपने अस्तित्व को
यूं न रुलाओ
जियो और जियो
कुछ इस तरह
कि मरें तो
अफ़सोस न हो
और जियें कुछ
इस अंदाज़ में
कि बार – बार
हार कर
उठने का गम न हो
उन्मुक्त
इस तरह बढ़ें कि
राह के पत्थर
फूल बन बिछ जायें
उडें कुछ इस तरह
कि आसमान भी
साथ – साथ उड़ने को
मजबूर हो जाए
आगे बढ़ें
कुछ इस तरह
कि तूफान की रफ्तार
धीमी हो जाए
आंधियां थम जायें
मौजों को भी
राह बदलनी पड़ जाये
कुछ इस तरह
अपने मन  को
दृढ़ इच्छा को
पतवार बना
रुकना नहीं है मुझको
मन की अभिलाषा
मन के अंतर्मन में जन्म लेती
स्वयं  प्रेरणादायिनी विचारों की श्रृंखला
चीरकर  हवाओं का सीना
बढ़ चलूँगा
कभी न रुकूंगा

जीवन

जीवन
जीवन स्वयं को प्रश्न जाल में
उलझा पा रहा है

जीवन  स्वयं को एक अनजान
घुटन में असहाय पा रहा है

जीवन स्वयं के जीवन के
बारे में जानने में  असफल सा है

जीवन क्या है  इस मकड़जाल को
समझ सको तो समझो

जीवन क्या है , इससे बाहर
निकल सको तो निकलो

जीवन क्या है , एक मजबूरी है
या है कोई छलावा

कोई इसको पा जाता है
कोई पीछे रह जाता

जीवन मूल्यों की बिसात है
जितने चाहे मूल्य निखारो

जीवन आनंदित हो जाए
ऐसे नैतिक मूल्य संवारो

जीवन एक अमूल्य निधि है
हर – क्षण  इसका पुण्य बना लो
मोक्ष मुक्ति मार्ग जीवन का
हो सके तो इसे अपना लो

नाता जोड़ो सुसंकल्पों से
सुआदर्शों को निधि बना लो

जीवन विकसित जीवन से हो
पर जीवन उद्धार करो तुम

सपना अपना जीवन – जीवन
पर जीवन भी अपना जीवन

धरती पर जीवन पुष्पित हो
जीवन – जीवन खेल करो तुम

चहुँ ओर आदर्श की पूंजी
हर पल जीवन विस्तार करो तुम

जीवन अंत ,पूर्ण विकसित हो
नए नर्ग निर्मित करो तुम

नववर्ष

नववर्ष
हर दिन को नए वर्ष की
मंगल  कामना से पुष्पित करो
कुछ संकल्प लो तुम
कुछ आदर्श स्थापित करो

हर दिन यूं ही कल में
परिवर्तित हो जाएगा
तूने जो कुछ न पाया तो
सब व्यर्थ हो जाएगा

उद्योग हम नित नए करें
हम नित नए पुष्प विकसित करें
कर्म धरा को अपना लो तुम
हर- क्षण हर -पल को पा लो तुम

समय व्यर्थ जो हो जायेगा
हाथ न तेरे कुछ आएगा
मात – पिता आशीष तले
जीवन को अनुशासित कर
पुण्य संस्कार अपनाकर
अपना कुछ उद्धार करो तुम

इस पुण्य धरा के पावन पुतले
राष्ट्र प्रेम संस्कार धरो तुम
मानवता की सीढ़ी चढ़कर
संस्कृति का चोला लेकर

पुण्य लेखनी बन धरती पर 
मानव बन उपकार करो तुम
संकल्पों का बाना बुनकर
नित- नए आदर्श गढो तुम

अपनाकर जीवन में उजाला
नित – नए आयाम बनो तुम
दया पात्र बनकर ना जीना
अन्धकार को दूर करो तुम

हर दिन को नए वर्ष की
मंगल कामना से पुष्पित करो
कुछ संकल्प लो तुम
कुछ आदर्श स्थापित करो


Wednesday, 6 June 2012

प्यार

प्यार की बोली का

प्यार की बोली का
प्यार से जवाब दो
प्यार के पालने में
जिन्दगी गुज़ार दो

प्यार एक एहसास है
घृणा को त्याग दो
प्यार की बोली का
प्यार से जवाब दो


प्यार से बोलो सभी से
प्यार से मिलो सभी से
प्यार एक उल्लास है
यह नहीं उपहास है


प्यार की बोली का
प्यार से जवाब दो

 भावना प्यार की
प्यार से जगा के देख
अश्रुपूर्ण नेत्रों में
आस तो जगा के देख

दिल में किसी के प्यार की
ज्योति तो जगा के देख
प्यार मंद – मंद पवन
यह नहीं आघात है

प्यार एक चाहत है
प्यार विश्वास है
प्यार पतवार है
प्यार अलंकार है

प्यार को पतवार बना
जीवन संवार लो
प्यार की बोली का
प्यार से जवाब दो


भाग्य

                                                                  भाग्य

भाग्य पर भरोसा न कर
कर्म से परे न हट
कर्म धरा पर उतर
भाग्य को मुटठी में कर

भाग्य पर भरोसा न कर

सफलता मिलेगी तुझे
यह सोच बढ़ा कदम
कर्महीन बन धरा पर
भाग्य पर संकट न बन

भाग्य पर भरोसा न कर

मंजिलें आसां नहीं पर
चाहतीं परिश्रम अथक
रास्ते कठिन पर
चाहते अनगिनत परीक्षण

भाग्य पर भरोसा न कर

कल का भरोसा न कर
वर्तमान परिवर्तित कर
जीवन संवार ले
भाग्य को निखार दे

भाग्य पर भरोसा न कर

रुकना तेरी नियति नहीं
आगे बढ़, बढ़ते चल
छू ले तू आसमां , फिर
भाग्य पर इतरा के चल

भाग्य पर भरोसा न कर