Wednesday 9 May 2012

तस्वीरें

तस्वीरें
बनाई मैंने कुछ तस्वीरें
पसंद नहीं आईं किसी को
कुछ तस्वीरों में
हाथ नहीं
कुछ में पैर नहीं
कहीं एक आँख में दृष्टव्य
आदमी
कहीं जलते हाथ को
ठंडक देने के प्रयास में
एक औरत
कहीं दहेज के नाम पर
रस्सी पर झूलती
सुंदर नारी
कुछ चरित्र
अनमने से
अपने विचारों
में खोये
शायद जीवन को
समझने की
कोशिश में
कुछ बुत बने
जीवन पाने की
लालसा में
वर्षों से बिस्तर पर
कोमा की सी
स्थिति में
कुछ कर्म के मर्म को
जानने के प्रयास में
कर्मरत दीखते हुए
कुछ तस्वीरें ऐसी
जिसमे मानव
मानव को समझाने का
असफल प्रयास करता हुआ
कहीं दूसरी और
नारी की
व्यथा
समाज पर
प्रहार करती हुई
एक तस्वीर
ऐसी
जो सदियों से
हो रहे
सामाजिक परिवर्तन
को दर्शाती
जिसमे पुरुष का  वर्चश्व
नारी की व्यथा
संस्कृति का पतन
संस्कारों की घुटन
सभ्यता के विकास का
लचर प्रदर्शन
आधुनिकता की और
बढ़ने का दंभ
ये तस्वीरें
किसी को पसंद नहीं आईं
आज का आधुनिक समाज
आधुनिक कला
समझता है
जिसका अर्थ
केवल  चित्रकार ही बेहतर समझता है
केवल  चित्रकार ही बेहतर समझता है

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