Wednesday, 9 May 2012

कवि हूँ

कवि हूँ
कवि हूँ कवि की गरिमा को पहचानो
करोगे वाहवाही कविताओं की  झड़ी लगा दूंगा
डूबते बीच मझदार को पार लगा दूंगा
कविता करना मेरा कोई सजा नहीं है
बुराइयों से बचाकर तुझे सजा पार करा दूंगा
कवि हूँ कवि की गरिमा को पहचानो
कविता की ताकत को  तुम क्या जानो
तुमने किया सजदा तो सर कटा दूंगा
उठाई जो तलवार तुमने प्रेम का पाठ पढ़ा दूंगा
की जो प्रेम की बातें सीने से लगा लूँगा
कवि हूँ कवि की गरिमा को पहचानो
प्रकृति मेरा प्रिय विषय रही है
हो सका तो चारों और फूल खिला दूंगा
सुंदरता की तारीफ की बातें न पूछो मुझसे
हो सका तो इसे नायाब चीज बना दूंगा
कवि हूँ कवि की गरिमा को पहचानो
जीता हूँ में समाज की बुराइयों में
लिखता हूँ कवितायें तनहाइयों में
अपराध बोध बुराइयों पर कर प्रहार
एक सभ्य समाज का निर्माण करा  दूंगा
कवि हूँ कवि की गरिमा को पहचानो
सभ्यताओं ने किया कवि दिल पर प्रहार
दिए नए नए जख्म नए नए विचार
विचारों की इन नई श्रंखला में भी
जीवन अलंकार करा  दूंगा
कवि हूँ कवि की गरिमा को पहचानो
कवि हमेशा जिया है दूसरों के लिएकवि हमेशा लिखता है समाज के लिएदिल से बरबस आवाज ये निकलती है
हे मानव जीवन तुम सब पर वार कर दूंगा
कवि हूँ कवि की गरिमा को पहचानो



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