Monday, 21 November 2011

बात मेरी मान लो

बात मेरी मान लो मेरे प्यारे बच्चों तुम जिन्दगी तुम्हारी यूं ही संवर जायेगी
बात मेरी मान लो मेरे प्यारे बच्चों तुम जिन्दगी तुम्हारी यूं ही संवर जायेगी
समय पर जागोगे समय पर पढोगे  तो अच्छे नम्बरों से पास हो जाओगे
माता पिता तुम्हारे आशीर्वाद देंगे तुम्हें शहर में अपने तुम जाने जाओगे
बात मेरी मान लो मेरे प्यारे बच्चों तुम जिन्दगी तुम्हारी यूं ही संवर जायेगी
समय पर जागोगे समय पर खेलोगे तो तन और मन प्रसन्न हो जाएगा
जहां से भी निकलोगे स्मार्ट दिखोगे तुम सारा जहां तुमको प्रिंस बुलाएगा
बात मेरी मान लो मेरे प्यारे बच्चों तुम जिन्दगी तुम्हारी यूं ही संवर जायेगी
अपने बड़ों का सम्मान किया जो तुमने सारा जहां तुमको गले से लगाएगा
कर्त्तव्य की वादियों में जो उतर जाओगे नाम के आगे टाइटल लग जाएगा
बात मेरी मान लो मेरे प्यारे बच्चों तुम जिन्दगी तुम्हारी यूं ही संवर जायेगी
सत्य की वादियों में जो उतर जाओगे तो जग में तुम्हारा नाम हो जाएगा
अपने गुरु का  सम्मान  किया जो तुमने सारा जग तुम्हारे अधीन हो जाएगा
बात मेरी मान लो मेरे प्यारे बच्चों तुम जिन्दगी तुम्हारी यूं ही संवर जायेगी

चंद अलफ़ाज़

इक दिन मेरी मज़ार पर आकर वो ये बोले
ए जाने वाले इक बार मिल के तो जाते
कुछ वादे कर जाते कुछ अफ़साने लिख जाते
दे जाते कुछ निशानियाँ मेरा घर आबाद कर जाते
                   -अनिल कुमार गुप्ता- 
  

Monday, 25 April 2011

जाग मुसाफिर

                                    जाग मुसाफिर
जाग मुसाफिर सोच रहा क्या
जीवन एक राही के जैसा
कहीं शाम तो कभी सवेरा
कहीं छाँव तो धूप कहीं है
बिखरा-बिखरा सा सबका जीवन
चलते रहना चलते रहना
रुक ना जाना आगे बढ़ना
जाग मुसाफिर सोच रहा क्या
राह कठिन हो भी जाए तो
हौसले का दामन पकड़ना 
चीर कर मौजों की हवाओं को
तुझे है मंजिल पार जाना 
रुकना तुझे नहीं है
न ही तुझे है घबराना 
चलना तेरी नियति है
रुकना है तुझको मंजिल पर
कभी गर्म हवाओं से लड़कर
कभी सर्द का कर सामना
आएगी बाधाएं रोड़ा बनकर
पीछे  मुड़  कभी न देखना 
जाग मुसाफिर सोच रहा क्या 
जीवन एक राही के जैसा 
कभी शाम तो कहीं सवेरा
राह में पल - पल ठोकर होंगी
पैरों के छाले बन नासूर सतायेंगे 
चूर- चूर  होगा तेरा तन
 मन भी तेरा साथ न देगा
रात की काली छाया भारी
करेगी इरादों को पस्त
फिर भी तुझको रुकना न होगा
मस्त चाल से बढ़ना होगा 
जाग मुसाफिर सोच रहा क्या
जीवन एक राही के जैसा
कहीं शाम  तो कहीं सवेरा
कहीं शाम तो कहीं सवेरा

Tuesday, 5 April 2011

MAA

माँ
माँ तेरे आँचल का
आश्रय पाकर
धन्य हो गया हूँ मै
माँ तेरी
कर्मपूर्ण जिंदगी
के पालने में
पलकर

कर्तव्यपूर्ण 
जिंदगी का
प्रसाद पाकर
धन्य हो गया
हूँ मै

माँ तेरी आँखों में
स्नेहपूर्ण व्यवहार
अपने बच्चों के लिए
उमड़ता प्यार
देखकर
धन्य हो गया हूँ मै

माँ अपने
बच्चों के भविष्य
के प्रति
तेरे चहरे पर
समय समय पर
उभरती चिंता की लकीरें
साथ ही
तेरा आत्मविश्वास
देख धन्य हो गया हूँ मै

माँ
जीवनदायिनी के
साथ-साथ
प्रेरणादायिनी
प्रेमदायिनी
समर्पणरुपी
मूर्ति के साथ- साथ 
आत्म बल से परिपूर्ण
शक्ति से संपन्न
ओजस
सभ्य
सुसंस्कृत
भविष्य
का निर्माण
करती

सांस्कृतिक
धरोहर
परम्पराओं का
निर्वहन करती
पुण्यमूर्ति को पाकर
धन्य हो गया हूँ मै
माँ
बच्चों को
बड़ों का सम्मान सिखाती
शिक्षकों के प्रति
आस्था जगाती
देवी को पाकर
धन्य हो गया हूँ मै
देखे थे मैंने
समय असमय
तेरी आँखों में आंसू
पर तेरा
विचलित न होना
प्रेरित करता है
मुझे शक्ति देता है
ऊर्जा देता है
विषम परिस्थितियों
में भी जीवन
जीने की कला
जो तूने सिखाई है
माँ
तुझे पाकर
धन्य हो गया हूँ मै
माँ
तुझे पाकर
धन्य हो गया हूँ मै
माँ
तुझे पाकर
धन्य हो गया हूँ मै










Monday, 28 March 2011

सत्य

सत्य
सत्य की बातें करो तुम
सत्य जीता हर सदी में
सत्य खोज एक जटिल विषय
मांगता अनगिनत परीक्षण
सत्य प्राप्ति के चरण में
सत्य पढ़ो तुम सत्य गुनो तुम
सत्य देखो सत्य बुनो तुम
सत्य नहीं परिकल्पना
सत्य अवलोकन सत्य राह पर
सत्य राह निर्मित करो तुम
आँधियों से मत डरो तुम
डगमगाना छोडकर
सत्य का पीछा करो तुम
सत्य मन का अमिट बिंदु
गढ़ सको तो गढो तुम
जियो सत्य में मरो सत्य में
सत्य चहुँ और व्याप्त
आत्मा परमात्मा में
प्राप्त कर 
जीवन बनो तुम
सत्य जीता हर सदी में
सत्य की बातें करो तुम



                                               

करो जो बात फूलों की

करो जो बात फूलों की
करो जो बात फूलों की
तो काँटों से  गिला फिर क्यों
करो जो बात जीवन की
तो मृत्यु से फिर डर है क्यों
करो जो बात दिन की
तो रात का भय कैसा
करो जो बात सुबह की
तो शाम की स्याह का डर कैसा
करो जो बात चांदनी की
तो अन्धकार का भय कैसा
करो जो बात मित्र की
तो शत्रु का डर कैसा
करो जो बात समाज की
तो व्यक्ति का डर कैसा
करो जो बात प्यार की
तो घृणा का भय कैसा
करो जो बात परहित की
तो स्वयं का दुःख कैसा
करो जो बात प्रकाश की
तो अन्धकार का भय कैसा
साथ हो परमात्मा तो
जीवात्मा का भय कैसा
साथ हो ब्रह्मात्मा तो
मृत्यु का भय कैसा
जीवन दो धाराओं का नाम है
एक साथ चलती है
तो दूसरी सामने से आती है
जिए इस दम से की
जीने का मर्म मिल जाए
धरती पर
जीवन ही जीवन खिल जाए



 

घबराना नहीं है तुमको

घबराना नहीं है तुमको
घबराना नहीं है तुमको
आगे है बढते जाना
रुकना नहीं है तुमको
आंधियों से है टकराना
पड़ेगा तुम पर भी
आधुनिकता का प्रभाव
एक ही फूँक से उड़ाकर
आगे है बढते जाना
मंजिल तुम्हारी चाहत है
यह सोच कदम बढ़ाना
घबराना नहीं है तुमको
आगे है बढते जाना
रुकना नहीं है तुमको
आंधियों से है टकराना
पीछे जो मुड़कर देख लोगे
खत्म हो जाओगे
रास्ते टेढ़े मेढे मगर
उचाईयों को छूते जाना
घबराना तनिक भी न तुम
तुम्हे पर्वतों से है टकराना
आँखों में हो आशा की चमक
मन में  अंतर्विश्वास जगाना
घबराना नहीं है तुमको
आगे है बढते जाना
रुकना नहीं है तुमको
आंधियों से है टकराना
आंधियां  भी चलेंगी
पर्वत भी हिलेंगे
पर कदम तेरे ए बालक
कदम दर कदम बढ़ेंगे
चीरकर हवाओं का सीना
तुझे है पर्वत पार जाना
थकान से तुझे क्या लेना
पतझड को सावन बनाना
घबराना नहीं है तुमको
आगे है बढते जाना
रुकना नहीं है तुमको
आंधियों से है टकराना
बनकर तू पृथ्वी
बनकर तू टीपू
बनकर तू तात्या
बनकर तू महाराणा
कर देश अभिमान
चरम पर छा जाना
बनकर तू गाँधी
बनकर तू लक्ष्मी
बनकर तू रानी
बनकर तू इंदिरा
हो देश पर न्योछावर
शहीद हो जाना
घबराना नहीं है तुमको
आगे है बढते जाना
रुकना नहीं है तुमको
आंधियों से है टकराना