Monday, 28 March 2011

करो जो बात फूलों की

करो जो बात फूलों की
करो जो बात फूलों की
तो काँटों से  गिला फिर क्यों
करो जो बात जीवन की
तो मृत्यु से फिर डर है क्यों
करो जो बात दिन की
तो रात का भय कैसा
करो जो बात सुबह की
तो शाम की स्याह का डर कैसा
करो जो बात चांदनी की
तो अन्धकार का भय कैसा
करो जो बात मित्र की
तो शत्रु का डर कैसा
करो जो बात समाज की
तो व्यक्ति का डर कैसा
करो जो बात प्यार की
तो घृणा का भय कैसा
करो जो बात परहित की
तो स्वयं का दुःख कैसा
करो जो बात प्रकाश की
तो अन्धकार का भय कैसा
साथ हो परमात्मा तो
जीवात्मा का भय कैसा
साथ हो ब्रह्मात्मा तो
मृत्यु का भय कैसा
जीवन दो धाराओं का नाम है
एक साथ चलती है
तो दूसरी सामने से आती है
जिए इस दम से की
जीने का मर्म मिल जाए
धरती पर
जीवन ही जीवन खिल जाए



 

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