जाग मुसाफिर
जाग मुसाफिर सोच रहा क्या
जीवन एक राही के जैसा
कहीं शाम तो कभी सवेरा
कहीं छाँव तो धूप कहीं है
बिखरा-बिखरा सा सबका जीवन
चलते रहना चलते रहना
रुक ना जाना आगे बढ़ना
जाग मुसाफिर सोच रहा क्या
राह कठिन हो भी जाए तो
हौसले का दामन पकड़ना
चीर कर मौजों की हवाओं को
तुझे है मंजिल पार जाना
रुकना तुझे नहीं है
न ही तुझे है घबराना
चलना तेरी नियति है
रुकना है तुझको मंजिल पर
कभी गर्म हवाओं से लड़कर
जीवन एक राही के जैसा
कहीं शाम तो कभी सवेरा
कहीं छाँव तो धूप कहीं है
बिखरा-बिखरा सा सबका जीवन
चलते रहना चलते रहना
रुक ना जाना आगे बढ़ना
जाग मुसाफिर सोच रहा क्या
राह कठिन हो भी जाए तो
हौसले का दामन पकड़ना
चीर कर मौजों की हवाओं को
तुझे है मंजिल पार जाना
रुकना तुझे नहीं है
न ही तुझे है घबराना
चलना तेरी नियति है
रुकना है तुझको मंजिल पर
कभी गर्म हवाओं से लड़कर
कभी सर्द का कर सामना
आएगी बाधाएं रोड़ा बनकर
पीछे मुड़ कभी न देखना
जाग मुसाफिर सोच रहा क्या
जीवन एक राही के जैसा
कभी शाम तो कहीं सवेरा
राह में पल - पल ठोकर होंगी
पैरों के छाले बन नासूर सतायेंगे
चूर- चूर होगा तेरा तन
मन भी तेरा साथ न देगा
रात की काली छाया भारी
करेगी इरादों को पस्त
फिर भी तुझको रुकना न होगा
मस्त चाल से बढ़ना होगा
जाग मुसाफिर सोच रहा क्या
जीवन एक राही के जैसा
कहीं शाम तो कहीं सवेरा
कहीं शाम तो कहीं सवेरा
आएगी बाधाएं रोड़ा बनकर
पीछे मुड़ कभी न देखना
जाग मुसाफिर सोच रहा क्या
जीवन एक राही के जैसा
कभी शाम तो कहीं सवेरा
राह में पल - पल ठोकर होंगी
पैरों के छाले बन नासूर सतायेंगे
चूर- चूर होगा तेरा तन
मन भी तेरा साथ न देगा
रात की काली छाया भारी
करेगी इरादों को पस्त
फिर भी तुझको रुकना न होगा
मस्त चाल से बढ़ना होगा
जाग मुसाफिर सोच रहा क्या
जीवन एक राही के जैसा
कहीं शाम तो कहीं सवेरा
कहीं शाम तो कहीं सवेरा
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