नोटबंदी में सारे हरे नोट ( व्यंग्य )
नोट बंदी में सारे हरे नोट , अब गुलाबी हो गए
बाकी सारे नोट अब, कबाड़ी के हो गए
कीमत घट रही नोटों की , दिन - ब - दिन
हज़ार के नोट अब , सौ के बराबर हो गए
गरीबों की थाली से , व्यंजन गायब हो गए
सपने गरीबों की आँखों से , ओझल हो गए
कीमत छू रही आसमां , करें तो क्या करें
इस महंगाई के इस दौर में , सेवन सी पी सी (7cpc) के लाले हो गए
नेताओं की तन्ख्वाह में , चार चाँद लग गए
गरीबों की रसोई पर , अब ताले हो गए
जीना हुआ मुहाल , बताओ करें तो क्या करें
नेताओं के सूट अब, लाखों के हो गए
कहते थे कि आयेंगे , जिन्दगी में अच्छे दिन
अच्छे दिनों के सपने , बस सपने हो गए
कहते थे मैं आ गया हूँ , सब अच्छा हो रहा
बीस रुपये वाले टमाटर , अस्सी के हो गए
नोटबंदी में हरे नोट , अब गुलाबी हो गए
बाकी सारे नोट , अब कबाड़ी के हो गए
( इस कविता का उद्देश्य किसी की आलोचना करना नहीं इसे व्यंग्य के रूप में पढ़े )
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