अनैतिकता
के पाताल के गर्त में
अनैतिकता के
पाताल के गर्त में
विचरते हम
मानव प्राण
जीवित तो इस
एहसास में
कि एक तन
को ढोते
जो निष्प्राण
विचरण कर रहा
इस धरा पर
मूल्यों की
सूझती नहीं
राह हमको
जीव – जंतुओं
की
श्रेणी में
ला खड़ा किया
जिसने
अतिमहत्वाकांक्षा
के मकड जाल में उलझे
नैतिकता व
मानव मूल्यों के
महत्ता को
समझने के
एहसास का दंभ भरते
दो गज ज़मीन भी
न छूट जाए
कहीं
इस प्रण के
साथ
अतिसम्प्दायुक्त
जीवन जीने का
छल साथ लिए
दौड़ते –
भागते
उस अंतहीन
दिशा की ओर
जो लक्ष्य के
भटकाव का
परिणाम लिए
हमारे समक्ष
दृष्टिगोचर
हो जाती है
संस्कृति,
संस्कारों परम्पराओं
से कोसों दूर
विचरने का
दुःख हमें सालता है
फिर भी मुझे
द्रुतगति से
अग्रसर होना
है
उस सुख की ओर
उस
विलासतापूर्ण जीवन की ओर
जो वर्तमान
में
असीम सुख का
आभास देता है
वर्तमान में
जीता यह प्राणी
भविष्य के
गर्त में होने वाले
सत्य से
अनभिज्ञ सा
मूल्यों की
खोज से परे
आने वाली
पीढ़ी के लिए
अरंडी के बीज
बोता
यह मानव
इस आशा व
उम्मीद से
कि शायद
इस बीज से
वह आम या
अनार का स्वाद
प्राप्त कर सकेगा
स्थितियां
भयावह
निर्मित कर
दी गई हैं
आधुनिकता के
चहेतों को
क्रोस
ब्रीडिंग पर
कुछ ज्यादा
ही विश्वास
आने वाली
सभ्यता को
नासूर की
तरह चुभने
वाली
कुसंस्कृति
कुसंस्कारोंसे
सिंचित आधुनिक पीढ़ी
सौंपने की
तैयारी
हो गई है
कचरों के ढेर
पर
फिकता
कुँवारी माओं का प्यार
दूसरों
की गोद का
अपने
स्वार्थ के लिए
हो
रहा इस्तेमाल
बिक
रहे चरित्र
गली
दुकानों पर
चीरहरण
पर आँखें
मूँद
लेना
किसी
गिरते को
संभालने
का माद्दा
न
होना
राष्ट्रप्रेम
के प्रति मन में
लचीलापन
ये
सब काफी है
मानव
के अनैतिकता
के
पाताल के गर्त में
विचरने
के लिए
कोई
सुबह ऐसी बना दो
कोई
रात मोतियों सी जगमगा दो
कोई
अवतार इस धरा पर ला दो
तारे
आसमान के इस धरा पर खिला दो
कोई
तो राष्ट्रप्रेम की ज्योति जला दो
कोई
तो भाईचारा फैला दो
कोई
तो मानव मूल्यों के गीत गा दो
कोई
तो मानव को मानव बना दो
कोई
तो हमको राह दिखा दो
कोई
तो हमको राह दिखा दो
कोई
तो हमको राह दिखा दो
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