Friday 30 August 2024

चाह नहीं मुझे , बनकर मैं नेता – व्यंग्य

 चाह नहीं मुझे , बनकर मैं नेता – व्यंग्य

चाह नहीं मुझे , बनकर मैं नेता
जनता को , ठगता जाऊँ

चाह नहीं मुझे, बनकर मैं चमचा
खुद को ही , मैं भरमाऊँ

चाह नहीं मुझे, बनकर मैं अंध भक्त
क्यों खुद से , धोखा खाऊँ

चाह नहीं मुझे , बनकर मैं बनकर लोभी
मोक्ष द्वार , परे हो जाऊँ

चाह नहीं मुझे, बनकर मैं पुष्प
नेता के चरणों में , फेका जाऊँ

चाह नहीं मुझे, बनकर मैं नेता
जनता को , टोपी पहनाऊँ

चाह नहीं मुझे, बनकर मैं नेता
अहंकार में , लिप्त हो जाऊँ

चाह नहीं मुझे, बनकर मैं नेता
अधर्म मार्ग पर , बढ़ जाऊँ

चाह नहीं मुझे, बनकर मैं नेता
जनता का दुश्मन . बन जाऊँ

नहीं मुझे , बनकर मैं नेता
जनता को , ठगता जाऊँ

चाह नहीं मुझे, बनकर मैं चमचा
खुद को ही , मैं भरमाऊँ

अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'

न जाने कहाँ फिर से, उनसे मुलाकात हो जाये

 न जाने कहाँ फिर से, उनसे मुलाकात हो जाये

न जाने कहाँ , फिर से
उनसे मुलाकात हो जाये
न कुछ कहें हम उनसे , न वो हमसे
बस एक दूसरे का , दीदार हो जाये

चंद खुशनुमा यादें ताज़ा हो जाएँ
वो आम के पेड़ की छैयां
बाहों में बाहें , एक दूसरे की
आगोश में एक दूसरे की हम – तुम

वो खतों का सिलसिला
वो छुप – छुप कर मिलना
वो तेरा मुस्कराना
चुनरी से मुँह छुपाना

काश वो यादें फिर से , ताज़ा हो जाएँ
तेरी आगोश में चंद सासें , गुजर जाएं
वो फिर से तेरा रूठना , और मेरा मनाना
काश फिर से हम , एक – दूसरे के हो जाएँ

न जाने कहाँ उनसे
फिर से उनसे मुलाकात हो जाये
न कुछ कहें हम उनसे , न वो हमसे
बस एक दूसरे का दीदार हो जाये

अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'

काली छाया का रहस्य – कहानी

 

काली छाया का रहस्य – कहानी

रामगढ़ के लोग अपना जीवन मेहनत करके बहुत ही आराम से गुजार रहे थे | किन्तु इन दिनों एक काली छाया इन लोगों के डर का कारण बनी हुई थी | रामगढ़ गाँव में प्रवेश करने से पहले एक पगडंडी पड़ती थी | जिस पर से गुजरने पर एक काली छाया वहां से गुजरने वालों को दिखाई देती थी | जिसे देखकर लोग बेहोश हो जाते थे | बाद में होश आने पर पता चलता था कि उनके पास जो भी पैसे , कीमती सामान होता था वो सब गायब हो जाता था |
यह सिलसिला महीनों तक चलता रहा पर किसी को भी काली छाया का रहस्य पता नहीं चला | लोग उस रास्ते से गुजरते और काली छाया का शिकार हो जाते | काली छाया का लोगों के दिलों दिमाग पर यह असर हुआ कि उन्होंने नया रास्ता खोजने का विचार किया ताकि इस काली छाया से कहर से बचा ज सके | नया रास्ता खोजने के बाद शुरू के दिनों में काली छाया का कोई असर नहीं दिखाई दिया किन्तु दो दिन बाद फिर से वही सिलसिला शुरू हो गया | लोग उस रास्ते से गुजरते और काली छाया देखकर बेहोश हो जाते और फिर वही सामान और कीमती चीजें गायब |
अब तो बात इतनी बढ़ गयी कि लोगों का जीना दूभर हो गया | इसी बीच एक दिन उसी रस्ते से साधुओं का एक काफिला निकला और रामगढ़ आ पहुंचा | पर लोगों को यह जानकार आश्चर्य हुआ कि उस साधुओं पर काली छाया का कोई असर नहीं हुआ | वे सोचने लगे कि हो सकता है कि काली छाया पर इस साधुओं की शक्ति का असर हुआ होगा | इसलिए सभी साधू सुरक्षित रामगढ़ पहुँच गए | किन्तु इसके बाद फिर वही सिलसिला शुरू हो गया |
एक दिन शाम होने से पहले रामगढ का ही एक लड़का दौड़ा – दौड़ा गाँव की ओर आया और गाँव के सरपंच को उसने कुछ बताया | सरपंच उस लड़के की बात सुनकर अचंभित रह गया | सरपंच ने तुरंत गाँव के बहुत से लोगों को इकठ्ठा किया और दौड़ चले उस जगह से कुछ दूरी पर जहाँ काली छाया का प्रकोप दिखाई देता था | सभी ने ध्यान से देखा तो पता चला कि काली छाया वाली सड़क के दोनों ओर जो पेड़ लगे थे उन पर कुछ लड़के छिपे बैठे थे | और किसी के वहां से गुजरने का इंतजार कर रहे थे |
इसी बीच सरपंच ने अँधेरा होने पर दो लोगों को सड़क के दूसरी ओर से गाँव की ओर इसी सड़क से जाने को कहा | जैसे ही वे सड़क पर पहुंचे | पेड़ पर बैठे लड़कों में से दो लड़कों ने लेज़र बीम से काली छाया बनाई | जिसे देखकर दोनों लड़के बेहोश होने का नाटक करने लगे | उन्हें बेहोश देख पेड़ से सभी लड़के उतर आये | जैसे ही वे उस दोनों बेहोश लड़कों के पास पहुंचे गाँव के सरपंच और अन्य गाँव वासियों ने उन पर हमला कर दिया और उन्हें पकड़ लिया | पूछने पर पता चला कि उन्हें नशा करने की आदत थी जिसकी वजह से कोई उन्हें काम नहीं देता था | और नशा करने के लिए उन्हें ये रास्ता सूझा | सभी लुटेरों को पुलिस के हवाले कर दिया गया और जिस लड़के ने उन लुटेरों के बारे में सरपंच को जानकारी दी थी उसे सम्मानित किया गया |
अब रामगढ़ गाँव उस काली छाया के कहर से मुक्त हो चुका था | सारे रामगढ़ वासी ख़ुशी – ख़ुशी रहने लगे |

चिंपू गधे की समझदारी – कहानी

चिंपू गधे की समझदारी – कहानी

                                 चंपकवन के सभी जानवर एक – दूसरे के साथ बहुत ही प्रेम व्यवहार के साथ रहते थे | चंपकवन में ही चिंपू गधा अपने माता – पिता के साथ आलीशान बंगले में रहा करता था | चंपू गधे के माता – पिता को अपने धनी होने का बहुत ज्यादा ही घमंड था |

                                     चंपकवन के सभी जानवर चिंपू गधे की सादगी के कायल थे | चिंपू गधा अब बड़ा हो गया था | उसके माता – पिता को अब उसकी शादी की चिंता होने लगी थी | उन्हें इस बात की भी चिंता थी कि उनकी बराबरी का कोई भी गधा परिवार न तो चंपकवन में था न ही आसपास के किसी और वन में | चिंपू गधे की माँ की वजह से दो – तीन रिश्ते यूं ही आये और चले गए | चूँकि चिंपू गधे की माँ को बारातियों का भव्य स्वागत और दहेज़ में बहुत सारा सामान चाहिए था | चिंपू गधे को माँ की इन बातों से लगने लगा कि इस जन्म में तो उसकी शादी होने वाली नहीं |
                                    एक दिन अचानक पास के जंगल कुंजनवन से चिंपू के लिए एक रिश्ता आया | चिंपू गधे के माता – पिता चूँकि पास के ही एक रिश्तेदार के पास गए थे | सो चिंपू ने ही उनका स्वागत किया | और उनसे आवश्यक बातें कर उनको समझा देता है कि वे किसी भी हालत में रिश्ते के लिए ना नहीं करें |
चिंपू के माता – पिता से बात करने के बाद कुंजनवन से आये लड़की के माता – पिता अपनी बेटी चिंकी गधी का हाथ चिंपू गधे के हाथ में देने को तैयार हो जाते हैं | शादी धूमधाम से हो जाती है | बारातियों का स्वागत भी और दहेज़ में ढेर सारी चीजें देखकर चिंपू गधे के माता – पिता भी बहुत खुश होते हैं | चंपकवन के सभी जानवर इस शादी का हिस्सा बनकर ख़ुशी से फूले नहीं समाते | क्यूँकि ऐसी खातिरदारी चंपकवन के किसी और जानवर की शादी में नहीं हुई थी |
                                            चिंपू की पत्नी चिंकी इस बात से बेहद खुश थी कि उसका पति चिंपू गधा बहुत ही सीधा सादा है | चिंकी अपने पति चिंपू गधे से पूछती है कि आपने इस शादी के लिए मना क्यों नहीं किया | चूंकि मेरा परिवार तो बहुत गरीब है | चिंपू ने बड़ी ही सादगी के साथ बताया कि मेरे माता – पिता की हैसियत के बराबर इस जंगल और आसपास के किसी भी जंगल में कोई भी नहीं है | उनकी दहेज़ लेने की आदत के चलते इस जन्म में मेरी शादी होने से थी | सो मैंने तुम्हारे माता – पिता से बात कर शादी का पूरा खर्च अपने हाथों में ले लिया | वैसे भी मुझे दहेज़ से सख्त नफरत है | अब मेरे माता – पिता भी खुश और तुम्हारा परिवार भी | और मैं और तुम भी तो इस शादी से खुश हैं |
                                  चिंपू गधे की पत्नी चिंकी अपने पति चिंपू के गले लग जाती है | दोनों ख़ुशी – ख़ुशी रहने लगते हैं |

अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'

दो दिन की जिंदगानी रे बन्दे

 दो दिन की जिंदगानी रे बन्दे

क्यूँ करता अभिमान रे बन्दे

महल अटारी सब छूटेंगे
खाली हाथ है , जाना रे बन्दे

क्यूँ करता अभिमान रे बन्दे

क्या लाया था , इस जग में तू
क्या साथ ले जाएगा

भाग रहा भौतिक जग में तू
मोक्ष राह से भटक जाएगा रे बन्दे

क्यूँ करता अभिमान रे बन्दे

क्या है मेरा , क्या है तेरा
ये जग है , माया का फेरा

साँसों की माला कब टूटेगी
समझ नहीं आयेगा , तुझे रे बन्दे

क्यूँ करता अभिमान रे बन्दे

दीन दुखियों की परवाह कर तू
कुछ कर्म इंसानियत की राह कर तू

क्यूँ कर माया के पीछे दौड़े
चल आध्यात्म की राह रे बन्दे

क्यूँ करता अभिमान रे बन्दे

चिंतन में तुम , प्रभु को धारो
जीवन अपना धर्म राह में वारो

जीवन नैया तेरी डगमग डोले
क्यूँ करता मनमानी रे बन्दे

क्यूँ करता अभिमान रे बन्दे

अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

बहके जो कोई तो संभाल लेना

 बहके जो कोई तो संभाल लेना

फिर चाहे अपना हो या हो पराया
चंद मुस्कान रोशन कर देना
फिर चाहे अपना हो या पराया

सिसकने नहीं देना किसी को भी
फिर चाहे अपना हो या पराया
भर देना उनकी जिन्दगी सितारों से
फिर चाहे अपना हो या पराया

कुछ पुष्प खिला देना उनके आँगन में
फिर चाहे अपना हो या पराया
जीत जाएँ वो भी अपनी जिन्दगी की जंग
फिर चाहे अपना हो या पराया

मुफलिसी से बचा लेना उनको
फिर चाहे अपना हो या पराया
पीड़ा से मुक्त कर देना उनको
फिर चाहे अपना हो या पराया

फिर चाहे अपना हो या पराया
फिर चाहे अपना हो या पराया

अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

चाँद बनकर मुस्कराऊँ

 चाँद बनकर मुस्कराऊँ

सूर्य सा मैं ओज पाऊं
पुष्प बन खुशबू बिखेरूं
सालिला का कल – कल संगीत हो जाऊं

बस इतनी सी अभिलाषा मेरी ……………….

पक्षियों का कलरव हो जाऊं
पवन का मद्धिम वेग पाऊं
बालपन मुस्कराहटों से परिपूर्ण
यौवन को संस्कारों से सजाऊं

बस इतनी सी अभिलाषा मेरी ……………….

पेड़ों पर कोंपल बन निखरूं
चन्दन सा मैं पावन हो जाऊं
गीत बन निखरूं मैं राष्ट्रहित
अम्बर सा विशाल ह्रदय पाऊं

बस इतनी सी अभिलाषा मेरी ……………….

लड़की बन निखरूं धरा पर
प्रेम का समंदर हो जाऊं
सुसंस्कृत माँ बनकर
संस्कारों का मैं विस्तार हो जाऊं

बस इतनी सी अभिलाषा मेरी ……………….

अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”