Tuesday, 2 November 2021

पाकर तुझे मैं अपना , जीवन संवार लूं

 पाकर तुझे मैं अपना , जीवन संवार लूं

पाकर तुझे मैं अपना , जीवन संवार लूं
खुद को तेरी राह पर , मैं निसार दूं

हो जाऊँ तेरा शागिर्द , अपनी पनाह में रख
तेरी इबादत को अपना, मकसद बना लूं

जागूँ तो तेरा नाम , लब पर हो मेरे
ख़्वाबों में तुझको, मैं अपना हमसफ़र बना लूं

तेरे करम का साया , हो मुझ पर मेरे मालिक
तुझको मैं अपनी जिन्दगी का इमां बना लूं

पाकर तुझे मैं खुद को , रोशन कर लूं
अपनी मंजिल का तुझे , मैं निशाँ बना लूं

रोशन हो जाए वजूद मेरा, तेरे करम से
अपनी कलम को , मैं तेरी इबादत कर लूं

तेरी इबादत में , ए मेरे मालिक
खुद को तेरा शागिर्द बना लूं

तेरे करम के चर्चे , हो रहे गली – गली
खुद को तुझ पर , मैं निसार दूं

पाकर तुझे मैं अपना , जीवन संवार लूं
खुद को तेरी राह पर , मैं निसार दूं

हो जाऊँ तेरा शागिर्द , अपनी पनाह में रख
तेरी इबादत को अपना, मकसद बना लूं


अंतिम सत्य ये , मैंने जाना

 अंतिम सत्य ये , मैंने जाना

अंतिम सत्य , ये मैंने जाना
चार कन्धों पर होगा जाना

क्या लाया था, क्या ले जाना
क्यूं करें हम , कोई बहाना

छूट जायेगी जमीं , छूट जाएगा आसमां
रह जायेंगे यहाँ , तेरी यादों के निशाँ

क्या पराया, क्या कोई अपना
तेरे कर्मों से , रोशन होगा तेरा आशियाना

छूट जायेंगे सारे अभिनंदन , सारे पुरस्कार तेरे
रह जाएगा यहाँ , तेरे सत्कर्मों का खजाना

क्यूं कर भागते रहें हम , सपनों के पीछे
सपनों की चाह में खुद को, अपनी ही निगाह में नहीं है गिराना

करना हो तो करो रोशन , इंसानियत का परचम
जाने के बाद उस खुदा से, निगाह भी तो है मिलाना

उस खुदा की शागिर्दगी को , अपना मकसद कर
क्यूं कर उस खुदा के दर पर , है जाकर ठोकर खाना

अंतिम सत्य ये , मैंने जाना
चार कन्धों पर होगा जाना

क्या लाया था, क्या ले जाना
क्यूं करें हम , कोई बहाना