नारी हूँ मैं
नारी हूँ मैं , नारी हूँ मैं
कभी सिसकती , कभी तड़पती हूँ मैं
बंधनों में रहकर भी संवरती हूँ मैं
नारी हूँ मैं , नारी हूँ मैं
कभी घर के आँगन का चाँद हो जाती हूँ
मैं
कभी मर्यादाओं में रहकर भी संवरती
हूँ मैं
नारी हूँ मैं , नारी हूँ मैं
कभी किसी कविता का विषय हो निखरती हूँ मैं
और कभी जिन्दगी की ग़ज़ल बन संवरती
हूँ मैं
नारी हूँ मैं , नारी हूँ मैं
क्यूं करूं खुद को व्यथित मैं
कभी माँ , कभी बहन बनकर निखरती हूँ
मैं
नारी हूँ मैं , नारी हूँ मैं
कभी चाँद बनकर घर को रोशन करती हूँ
मैं
कभी बाहों का आलिंगन हो संवरती हूँ
मैं
नारी हूँ मैं , नारी हूँ मैं
क्यूं कर घूरती हैं निगाहें मुझको
सजती हूँ, संवरती हूँ , खुद से
मुहब्बत करती हूँ मैं
नारी हूँ मैं , नारी हूँ मैं
मातृत्व की छाँव तले खुद को पूर्ण
करती हूँ मैं
कभी वात्सल्य की पुण्यमूर्ति हो
जाती हूँ
कभी मातृत्व के स्पर्श से
खुद को अभिभूत करती हूँ मैं
नारी हूँ मैं , नारी हूँ मैं
कभी देवी कह पूजी जाती हूँ मैं
कभी क़दमों तले रौंदी जाती हूँ मैं
कभी नारी के एहसास से गर्वित हो
जाती हूँ मैं
कभी पुरुषों के दंभ का शिकार हो
जाती हूँ मैं
नारी हूँ मैं , नारी हूँ मैं
जन्म लेती हूँ , घर में लक्ष्मी
होकर
बाद में बोझ हो जाती हूँ मैं
नारी हूँ मैं , नारी हूँ मैं
ताउम्र सहेजती हूँ रिश्तों को मैं
पल भर में परायी हो जाती हूँ मैं
नारी हूँ मैं , नारी हूँ मैं
कभी जीती हूँ पायल की छन – छन के
साथ
कभी “निर्भया” बन बिखर जाती हूँ मैं
नारी हूँ मैं , नारी हूँ मैं
कभी मेरी एक मुस्कान पर दुनिया फ़िदा
हो जाती है
कभी यही मुस्कान जिन्दगी की कसक बन
जाती है
कभी संवरती हूँ, सजती हूँ, कभी
बिखरती हूँ
नारी हूँ मैं , नारी हूँ मैं
कभी लक्ष्मी बाई , दुर्गावती हो
पूजी जाती हूँ मैं
कभी आसमां की सैर कर कल्पना, सुनीता
हो जाती हूँ मैं
नारी हूँ मैं , नारी हूँ मैं
कभी दहेज़ की आंच में तपती हूँ
कभी सती प्रथा का शिकार हो जाती हूँ
मैं
नारी हूँ मैं , नारी हूँ मैं
कभी इंदिरा बन संवरती हूँ
कभी प्रतिभा की तरह रोशन हो जाती हूँ मैं
नारी हूँ मैं , नारी हूँ मैं
कभी अपनों के बीच खुद को अजनबी सा
पाती हूँ मैं
कभी सुनसान राह पर लुटती हूँ, कभी
घर के भीतर ही नोची जाती हूँ मैं
नारी हूँ मैं , नारी हूँ मैं
मेरा तन मेरे अस्तित्व पर पड़ता है
भारी
मेरा होना मेरे जीवन के लिए हो रहा
चिंगारी
क्या कर उस परम तत्व ने रचा मुझको
क्यों कर “निर्भया” कर दिया लोगों
ने मुझको
क्यूं कर नहीं स्वीकारते मेरे अस्तित्व
को
क्यूं नहीं नसीब होती खुले आसमां की
छाँव मुझको
क्यूँ कर मुझसे मुहब्बत नहीं है
उनको
क्यूंकि नारी हूँ मैं , नारी हूँ
मैं , नारी हूँ मैं
No comments:
Post a Comment