कालचक्र में उलझे
कालचक्र में उलझे सब , क्षितिज के निशाँ नहीं
क्या सोचकर मंजिल की कल्पना में डूबे ?
दृष्टिकोण में अब दूरदर्शिता रही नहीं
क्या सोचकर कल्पना की ऊँची उड़ान में डूबे ?
निर्दोष , निरपराध न हुए नयन अब
घूरते उस खूबसूरत यौवना का तन
नयनों की पवित्रता अब मकड़जाल में उलझी
क्या सोच मोक्ष की कल्पना में डूबे ?
निर्वासित सा जीवन जी रहे हैं सब
राष्ट्रप्रेम अब दिलों का नूर नहीं
अब यौवन देश हित न्योछावर होते नहीं
क्या सोच स्वतन्त्र राष्ट्र की कल्पना में
डूबे ?
निर्विकार चरित्रों का अभाव झेलता समाज
आदर्शों की स्थापित नहीं करता राह आज का युवा
दुश्चरित्रों से जूझता संस्कारित प्राणी
क्या सोच स्वस्थ समाज की कल्पना में डूबे ?
अभिव्यक्ति सुविचारों की हो गयी कल्पना का
विषय
अनुयायी संस्कारों के हो गए भ्रम का विषय
आतिथ्य , अभिनन्दन अब हो गए स्वयं के स्वार्थ
का विषय
फिर क्यों अपेक्षाओं सागर की कल्पना में डूबे
?
अनपढ़ ही थे तो क्या बुरे थे
अतिमहत्वाकांक्षी न थे तो क्या बुरे थे
संतुष्ट थे दो रोटी , कपड़ा झोपडी में
फिर क्यों आसमान छूने की कल्पना में डूबे ?
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