Wednesday, 18 April 2012

भँवर

भँवर
ये किस भँवर में
आ फंसे हैं हम
किनारे की आस तो है
पर किनारा मिलता नहीं है
हो रहे हैं

दिन प्रतिदिन आसामाजिक
फिर भी
समाज में रहने का भ्रम
पाले हुए हैं हम
ये किस भँवर में
आ फंसे हैं हम
किनारे की आस तो है
पर किनारा मिलता नहीं है
हमारी चाहतों ने
हमारी जरूरतों ने
हमें एक दूसरे
से बाँध रखा है 
वरना अपने अपने अस्तित्व के लिए
जूझ रहे हैं हम
ये किस भँवर में
आ फंसे हैं हम
बंद कर दिए हैं हमने
मंदिरों के दरवाजे
नेताओं के चरणों की
धूल हो गए हैं हम
ये किस भँवर में
आ फंसे हैं हम
चाटुकारिता से पल्ला
झाड़ा नहीं हमने
चापलूसी का दामन
छोड़ा नहीं हमने
बदनुमा जिंदगी के
मालिक हो गए हैं हम
ये किस भँवर में
आ फंसे हैं हम
दर्द दूसरों का बाँटने में
पा रहे हम स्वयं को अक्षम
स्वयं की ही परेशानियों
से परेशान हो रहे हैं हम
चलना हो रहा है दूभर
सहारा किसका बन सकेंगे हम
ये किस भँवर में
आ फंसे हैं हम
आये दिन की घटनाओं के
पात्र हो गए हैं हम
सामाजिक अशांति के  चरित्र हो
जी रहे हैं हम
जीने की भयावहता में
राह भटके जा रहे हैं हम
ये किस भँवर में
आ फंसे हैं हम
आस है उस पल की
जो आशां  कर दे
सारी राहें
ले चले इस

अनैतिक व्यवहार से दूर
आँचल में अपने समेटे

सभी दुःख दर्द
जीने की राह दे

जीवन को अस्तित्व दे
मार्ग प्रशस्त कर
दूसरों के लिए जीने की लालसा जगा
ताकि कोई भी ये न कह सके
ये किस भँवर में
आ फंसे हैं हम
किनारे की आस तो है
पर किनारा मिलता नहीं है


                                                                                                अनिल कुमार गुप्ता   



Saturday, 7 April 2012

चरण कमल तेरे बलि – बलि जाऊं

 चरण कमल तेरे बलि बलि जाऊं
चरण कमल तेरे बलि – बलि जाऊं
मुझको पार लगा देना
गिरने लगूं तो मेरे मालिक
बाहों में अपनी उठा लेना
चरण कमल तेरे बलि बलि जाऊं
पुष्पक वाहन हों मेरे साथी
पुष्प भी हों मेरे सहवासी
तन को मेरे उजले मन से
जीवन सार बता देना
चरण कमल तेरे बलि बलि जाऊं
ध्यान तेरा हर पहर हो मालिक
मन मंदिर में बस जाना
पुण्य पुष्प बन जियूं धरा पर
मुझको तुझमे समां लेना
चरण कमल तेरे बलि बलि जाऊं
पुष्प समर्पित चरणों में तेरे
गीता सार बता देना
पा लूं तुझको इस जीवन में
ऐसा मन्त्र बता देना
चरण कमल तेरे बलि बलि जाऊं
पुण्य कर्म विकसित कर मालिक
चरण कमल श्रृंगार धरो तुम
खिला सकूं आदर्श धरा पर
पूर्ण जीव उद्धार करो तुम
चरण कमल तेरे बलि बलि जाऊं
चरण कमल तेरे बलि बलि जाऊं
चरण कमल तेरे बलि बलि जाऊं
                                                    
अनिल कुमार गुप्ता

दीदार का तेरे इन्तजार है मुझको


दीदार का तेरे इन्तजार है मुझको
तू यहीं कहीं आसपास है, ये एतबार है मुझको
मै तुझको ढूंढूं , ऐसी जुर्रत मै कर नहीं सकता
तू हर एक सांस में बसता है , ये एतबार है मुझको
मक्का हो या मदीना, जहां में सब जगह
तेरे नाम का सिक्का है, ये एतबार है मुझको
दीदार का तेरे, एतबार है मुझको   
किस्सा-ए-करम तेरा, बयान मै क्या करूं
हर शै में तेरा नाम, हर जुबान पे तेरा नाम
खुशबू तेरा एहसास, ये एतबार है मुझको   
पलती है जिंदगी, एक तेरी कायनात में
खिलता है तू फूल बनकर, ये एतबार है मुझको
दीदार का तेरे, एतबार है मुझको  
मेरे पिया तेरा करम, तेरी इनायत हो
जियूं तो तेरा नाम, मेरे साथ-साथ हो
मेरा सारा दर्द तेरा, ये एहसास है मुझको
तेरा आशियाना हो, आशियाँ मेरा   
तू रहता है साथ मेरे, ये एतबार है मुझको
दीदार का तेरे, एतबार है मुझको  
जीता हूँ तेरे दम से, जीता हूँ तेरे करम से
हर एक आह मेरी, करती परेशां तुझको
तू हर दुःख में साथ मेरे, ये एतबार है मुझको
कर दे तू राह आशां, कर दे तू पार मुझको
मरूं तो जुबान पे तू हो, ये एतबार है मुझको
दीदार का तेरे, एतबार है मुझको  

                                                                   अनिल कुमार गुप्ता