Wednesday, 29 January 2020

प्रेम अनंत है


प्रेम अनंत है

प्रेम अनंत है और प्रेम की कहानी भी
बदलते जीवन के साथ बदलती प्रेम की परिभाषा

प्रेम एक धारा जो समानांतर बहती
प्रेम धारा में खुद को समाहित करना
इतना भी आसां  नहीं

प्रेम में आनंद और पीड़ा सभी स्वीकार्य
प्रेम का नाम ही समर्पण है
प्रेम एक ऐसी ऊर्जा जो भीतर तक उजाला करती

प्रेम का अपना एक सत्य
प्रेम की अपनी कोई सीमा नहीं
प्रेम के अपने बहुत से आयाम
केवल तन का आकर्षण प्रेम नहीं होता

त्याग का नाम ही प्रेम है
प्रेम की अपनी अलग कोई परिभाषा नहीं
प्रेम का अपना कोई धर्म नहीं
प्रेम बंधनों में बांधकर नहीं रखा जा सकता

न ही प्रेम को कैद किया जा सकता है
प्रेम की अनुभूति खुदा का एहसास
प्रेम का नाम सुनते ही रोमांचित हो जाता है मानव
प्रेम का संसार विस्तृत , व्यापक

प्रकृति के विहंगम दृश्य
सलिला का कल – कल निनाद
हिमालय का सा ओज लिए पर्वत श्रंखलायें
कानन का अपना उपवन
अलग  - अलग जीवों की अपनी भव्यता

ये सभी प्रेम राग के अंग

पक्षियों के रंग  - बिरंगे पंख
जल  - जीवों की अद्भुत आकृति
सागर की अपनी भव्यता एवं सुन्दरता
प्रकृति का श्रृंगार पुरुष और नारी

ये सभी प्रेम राग के अंग

पौधों में सजे पुष्प , प्रकृति का अलंकरण
पक्षियों की मीठी तान संगीत का संगम
मंदिर की घंटी की मीठी तान
मस्जिद में होती अज़ान
चर्च में लगता दुआओं का मेला
गुरद्वारे चखाते सेवा का मेवा

ये सभी प्रेम राग के अंग

जीवन का हर एक सुकर्म
मानव का हर एक सात्विक प्रयास
संस्कृति, संस्कारों की अपनी भव्यता
जीवन के हर एक सत्य में बसता प्रेम

प्रेम का अंत नहीं
प्रेम की कोई सीमा नहीं
प्रेम अनंत,
हर एक जीव
हर एक कण में बसता प्रेम..............


एक नई दुनिया


एक नई दुनिया

हम उस “एक नई दुनिया” की तरफ
अग्रसर हो रहे हैं 

जहां
इंसान तो हैं पर
इंसानियत शून्य में झांकती नज़र आती है

हम उस “एक नई दुनिया” का
सुस्वप्न देख रहे हैं जहां
हर कोई व्यस्त है
अपनी ही दुनिया में
एक दूसरे से अनजान
शायद एक उपकरण “मोबाइल” की छाँव में

हम उस “एक नई दुनिया “ की तरफ
बढ़ रहे हैं
जहां
मानव तो है
पर मानवता खुद को ही
ढोने पर मजबूर है
संवेदनाओं के अंत का
एक ज्वर सा आ गया है
लहरों की भागमभाग है
पर छोर कहाँ है? पता नहीं

हम उस “एक नई दुनिया “ की तरफ
बढ़ रहे हैं
जहां
परिवार तो हैं
पर परिवार का हिस्सा होते चरित्र
रिश्तों की परिभाषा से
अनजान हैं
“वसुधैव कुटुम्बकम” को झुठलाते
ये चरित्र यूं ही विचरण कर रहे हैं
परिवार शब्द के दंभ के साथ

हम उस “एक नई दुनिया “ की तरफ
बढ़ रहे हैं
जहां
धर्म के ठेकेदारों का
धर्म को ही अधर्म रुपी
राजनीति का अखाड़ा बना दिया है
धर्म से उठता विश्वास
शायद राजनीति में
 विश्वास जगाने लगा है

हम उस “एक नई दुनिया “ की तरफ
बढ़ रहे हैं
जहां
मंदिरों एवं मस्जिदों में
मन्त्रों एवं अजान का आलाप सुनकर
जागने वाला मनुष्य
अब मोबाइल की
रिंगटोन पर जागने लगा है
मंत्र एवं अजान स्वयं के अस्तित्व पर
सोच में हैं
मंदिर की घंटियों का स्वर भी
अब सुनाई नहीं देता
न ही अजान की आवाज

हम उस “एक नई दुनिया “ की तरफ
बढ़ रहे हैं
जहां
प्रकृति के अनुपन दृश्यों का
अवलोकन करने की
मन में उत्सुकता तो है
किन्तु हमने स्वयं के
अप्राकृतिक प्रयासों से
प्रकृति के अनुपन दृश्यों को
द्रश्यविहीन कर दिया है

हम उस “एक नई दुनिया “ की तरफ
बढ़ रहे हैं
जहां
आज की युवा पीढ़ी
सदियन पुराने सुसंस्कृत
विचारों को तिलांजलि देने
की सलाह देकर
बुजुर्गों को जीने की
आधुनिक राह दिखाने का
असफल प्रयास करती
नज़र आ रही है

हम उस “एक नई दुनिया “ की तरफ
बढ़ रहे हैं
जहां
शिक्षा , अपने मूल उद्देश्य से
पीछा छुड़ाती नज़र आ रही है
और
स्वयं के पेशेवर होने का
दंभ भारती नज़र आ रही है

हम उस “एक नई दुनिया “ की तरफ
बढ़ रहे हैं
जहां
देवालय शून्य में झांकते
नज़र आ रहे हैं
भगवान् अपने भक्तों के
इंतजार में बाट जोह रहे हैं
और
दूसरी ओर
“बार” और “पब” में
“मस्ती की पाठशाला “ में लोग
जिन्दगी के वास्तविक सत्य
की खोज में प्रयासरत हैं
साथ ही जीवन के असीम
आनंद की खोज के प्रयास में भी

हम उस “एक नई दुनिया “ की तरफ
बढ़ रहे हैं
जहां
बच्चे के पैदा होते ही
एक ऐसी पाठशाला की ओर
धकेल दिया जाता है
जहां से शायद वह
“पी एच डी” करके ही
घर वापस आयेगा   
या फिर कहें तो
एक बड़े पैकेज के साथ
आखिर
जीवन के किस पथ पर
अग्रसर हैं हम सब

शारीरिक रूप से अस्वस्थ
मानसिक रूप से अपरिपक्व
आधुनिक विचारों की
गठरी पीठ पर लादे हुए
सुसंस्कृत, सुसभ्य समाज की
संकल्पना को
अपने अप्राकृतिक कृत्यों से
साकार करने की एक असफल
कोशिश करते हुए
आखिर किस दुनिया की ओर
अग्रसर हो रहे हैं हम ?...............