प्रेम अनंत है
प्रेम अनंत है और प्रेम की
कहानी भी
बदलते जीवन के साथ बदलती
प्रेम की परिभाषा
प्रेम एक धारा जो समानांतर
बहती
प्रेम धारा में खुद को
समाहित करना
इतना भी आसां नहीं
प्रेम में आनंद और पीड़ा सभी
स्वीकार्य
प्रेम का नाम ही समर्पण है
प्रेम एक ऐसी ऊर्जा जो भीतर तक उजाला करती
प्रेम का अपना एक सत्य
प्रेम की अपनी कोई सीमा
नहीं
प्रेम के अपने बहुत से आयाम
केवल तन का आकर्षण प्रेम
नहीं होता
त्याग का नाम ही प्रेम है
प्रेम की अपनी अलग कोई
परिभाषा नहीं
प्रेम का अपना कोई धर्म
नहीं
प्रेम बंधनों में बांधकर नहीं
रखा जा सकता
न ही प्रेम को कैद किया जा
सकता है
प्रेम की अनुभूति खुदा का
एहसास
प्रेम का नाम सुनते ही
रोमांचित हो जाता है मानव
प्रेम का संसार विस्तृत ,
व्यापक
प्रकृति के विहंगम दृश्य
सलिला का कल – कल निनाद
हिमालय का सा ओज लिए पर्वत
श्रंखलायें
कानन का अपना उपवन
अलग - अलग जीवों की अपनी भव्यता
ये सभी प्रेम राग के अंग
पक्षियों के रंग - बिरंगे पंख
जल - जीवों की अद्भुत आकृति
सागर की अपनी भव्यता एवं
सुन्दरता
प्रकृति का श्रृंगार पुरुष
और नारी
ये सभी प्रेम राग के अंग
पौधों में सजे पुष्प ,
प्रकृति का अलंकरण
पक्षियों की मीठी तान संगीत
का संगम
मंदिर की घंटी की मीठी तान
मस्जिद में होती अज़ान
चर्च में लगता दुआओं का
मेला
गुरद्वारे चखाते सेवा का
मेवा
ये सभी प्रेम राग के अंग
जीवन का हर एक सुकर्म
मानव का हर एक सात्विक
प्रयास
संस्कृति, संस्कारों की
अपनी भव्यता
जीवन के हर एक सत्य में
बसता प्रेम
प्रेम का अंत नहीं
प्रेम की कोई सीमा नहीं
प्रेम अनंत,
हर एक जीव
हर एक कण में बसता प्रेम..............