Friday, 16 August 2019

तराना - ए - हिन्द (हास्य - व्यंग्य कविता)


तराना  - ए   - हिन्द

तराना-ए- हिन्द गुनगुनाएं तो गुनगुनाएं कैसे
बेजुबानों को गुनगुनाना सिखाएं तो सिखाएं कैसे

पेशानी पर बल लिए जी रहा हर एक शख्स
राष्ट्रवाद का तराना गुनगुनाएं तो गुनगुनाएं कैसे

सलामत हैं नेता , बमुश्किल हो रही जनता की गुजर - बसर
जनता के दरबार में , संसद की “थाली” पहुंचाएं तो पहुंचाएं कैसे

फ़रिश्ता हूँ “अच्छे दिन लाऊंगा “  ऐसा कहते हैं नेता लोग
जनता को बेवकूफ ये बनाएं तो बनाएं कैसे

बेबसी और मुफलिसी के दौर से गुजरता हर एक शख्स
स्विट्ज़रलैंड से काला धन लायें तो लायें कैसे

देश का रुपया खाकर भी विदेशों में कर रहे हैं ऐश कुछ लोग
नीरव मोदी और विजय माल्या को पैसा लौटाने को मनाएं तो मनाएं कैसे

फितरत में जिनकी है जनता को धोखा देना
उन्हें राष्ट्रधर्म का पाठ पढ़ाएं तो पढ़ायें कैसे

“अच्छे दिन आयेंगे “ इसी आस में जी रहा हर एक शख्स
नेता भी ये सोच रहे “अच्छे दिन लायें ” तो लायें कैसे

तराना-ए- हिन्द गुनगुनाएं तो गुनगुनाएं कैसे
बेजुबानों को गुनगुनाना सिखाएं तो सिखाएं कैसे

पेशानी पर बल लिए जी रहा हर एक शख्स
राष्ट्रवाद का तराना गुनगुनाएं तो गुनगुनाएं कैसे

देवों के चरणों में


देवों के चरणों में

देवों के चरणों में मस्तक रख दूं
कल्याण मेरा हो जाएगा
जो मिला नहीं मिल जाएगा
जो खोया है पा जाऊंगा


ख़्वाबों के दरवाजे खुल जायेंगे
जीवन सफल हो जाएगा
खिल जाएगा भाग्य मेरा
जग में नाम मेरा हो जाएगा

सत्कर्म राह बढ़ चलूँगा मैं
हर कर्म पावन हो जाएगा
तेरे चरणों का करके आचमन
मैं मोक्ष राह बढ़ जाऊंगा

भक्ति के दीपक की लौ से
जीवन को दिशा दे पाऊंगा
मेरी पीर हरेंगे मेरे भगवन
कष्ट मुक्त जीवन हो जाएगा

पावनता को गहना कर लूंगा
मेरा हर कर्म पवित्र हो जाएगा
देवों के चरणों में मस्तक रख दूं
कल्याण मेरा हो जाएगा