दो वक्त की नमाज़
दो वक्त की नमाज़ से , यूं नाफर्मानी न कर
इबादत से यूं आँखें न फेर , अपनी जिन्दगी को यूं जहन्नुम न कर |
अपने अरमानों में न डूब, इंसानियत की राह से यूं मुंह न मोड़
जिन्दगी चार दिनों का मेतरा, यूं खुद से तू बेईमानी न कर |
खुद से खुद का परिचय कर, खुद से तू यूं मुँह न फेर
ये जिन्दगी है एक अनमोल्र तोहफा, उस खुदा की नाफर्मानी न कर |
किस्सा न हो जाए ये जिन्दगी , कोई तो ऐसी कोशिश कर
खुद पर न पछताए एक दिन, यूं खुद से तू बेईमानी न कर |
चाँद और तारों को आसमां से तोड़ तने के रूवाब न देख
चाँद तारे नसीब होंगे तुझे , अपनी कोशिशों से यूं बेईमानी न कर |
किसी की बेबसी को देख अनदेखा न कर, खुद पर तू इतना न इतरा
इंसानियत की राह से मुंह न फेर, खुद को तू यूं बेबस न कर |
अपनी कोशिशों को उस खुदा के करम का समंदर समझ
रोशन होगी शख्सियत तेरी भी, उस खुदा पर एतबार तो कर |
दो वक्त की नमाज़ से , यूं नाफर्मानी न कर
इबादत से यूं आँखें न फेर , अपनी जिन्दगी को यूं जहन्नुम न कर |
अपने अरमानों में न डूब, इंसानियत की राह से यूं मुंह न मोड़
जिन्दगी चार दिनों का मेतरा, यूं खुद से तू बेईमानी न कर | |
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