मेरी रचनाएं मेरी माताजी श्रीमती कांता देवी एवं पिताजी श्री किशन चंद गुप्ता जी को समर्पित
Friday, 29 August 2014
Wednesday, 27 August 2014
Friday, 22 August 2014
Monday, 18 August 2014
निरपराध चरित्र बनो तुम
निरपराध चरित्र बनो तुम
निरपराध चरित्र बनो तुम
आस्तिकता के गीत बनो तुम
संस्कारों की पुण्य भूमि पर
स्वयं को स्थापित करो तुम
जिज्ञासु धर्मात्मा होकर
पुण्य विचारों से सजो तुम
इश्वर से भक्ति पाकर
सन्मार्ग प्रस्थान करो तुम
जगद्गुरू है वह परमेश्वर
अनुकम्पा के पात्र बनो तुम
मर्यादा का गहना बनकर
आदर्शपूर्ण चरित्र बनो तुम
सामर्थ्य तेरा बढ़ता जाए
सागर सा विशाल बनो तुम
पाकर उस प्रभु की अनुकम्पा
जीवन को पूर्ण करो तुम
निरपराध चरित्र बनो तुम
आस्तिकता के गीत बनो तुम
संस्कारों की पुण्य भूमि पर
स्वयं को स्थापित करो तुम
हे केशव हे बनवारी
हे केशव हे बनवारी
हे केशव हे बनवारी
हे माधव कृष्ण मुरारी
भक्ति का मार्ग सजा तुमसे
प्रेम का मार्ग मिला तुमसे
हे केशव हे बनवारी
हे माधव कृष्ण मुरारी
पावन तुमसे ही विचार हुए
कर्म सभी संस्कार हुए
धर्म की राह मिली तुमसे
युद्ध सभी धर्मयुद्ध हुए
हे केशव हे बनवारी
हे माधव कृष्ण मुरारी
तुम सुन्दर हो अति पावन हो
जीवन के राज मिले तुमसे
प्रेम की परिभाषा तुमसे
मीरा राधा के श्याम हुए
हे केशव हे बनवारी
हे माधव कृष्ण मुरारी
स्वयं पर संयम मिला तुमसे
मोक्ष का मार्ग मिला तुमसे
मित्रता का महत्त्व सिखलाया तुमने
अर्जुन – सुदामा के मित्र हुए
हे केशव हे बनवारी
हे माधव कृष्ण मुरारी
जीवन का अर्थ समझाया तुमने
उपासना का महत्त्व बताया तुमने
आध्यात्म के गुरु हुए तुम
पावन संस्कार सिखाया तुमने
हे केशव हे बनवारी
हे माधव कृष्ण मुरारी
Wednesday, 6 August 2014
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