असंस्कृत हुई भाषा
असंस्कृत हुई भाषा
असभ्य होते विचार
असमंजस के वशीभूत जीवन
संकीर्ण होते सुविचार
अहंकार बन रहा परतंत्रता
असीम होती लालसा
जिंदगी का ठहराव भूलती
आज कि जिंदगी
‘ट्वीट’ के नाम पर
हो रही बकबक
असहिष्णु हो रहा हर पल
ये कौन सी आकाशगंगा
आडम्बर हो गया ओढनी
आवाहन हो गयी बीती बातें
मधुशाला कि ओर बढ़ते कदम
संस्कार हो गए आडम्बर
ये कैसा कुविचारों का असर
संस्कृति माध्यम गति से रेंगती
विज्ञान का आलाप होती जिंदगी
धार्मिकता शून्य में झांकती
मानवता स्वयं को
अन्धकार में टटोलती
ये कैसी कसमसाहट
ये कैसा कष्ट साध्य जीवन
कांपती हर एक वाणी
काँपता हर एक स्वर
मानव क्यों हुआ छिप्त
क्यों हुआ रक्तरंजित
समाप्त होती संवेदनाएं
फिर भी न विराम है
कहाँ होगा अंत
समाप्त होगी कहाँ ये यात्रा
न तुम जानो न हम ...........
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