झाँसी की रानी- एक श्रद्धांजलि
झाँसी की
रानी की
है अजब
कहानी
झाँसी को
बचाने
दी
प्राणों की कुर्बानी
सादे
जीवन का
बीज उसने
बोया
चार वर्ष
की आयु में
अपनी माँ
को खोया
बाल्यकाल
से ही
वह
बिल्कुल निडर थी
वीरता
उसके
मन में
रची बसी थी
घोड़े की
सवारी
लगती थी
उसे न्यारी
झाँसी को
बचाने वह
अंग्रेजों
पर पड़ी भारी
मन से
निडर वह
तन से सजग
थी
देश प्रेम
की भावना
उसके मन
में बसी थी
झाँसी से
उसको कुछ
विशेष ही
लगाव था
उसके कोमल
मन पर
शास्त्रों
का प्रभाव था
उसे मराठी
, संस्कृत और
हिंदी का
ज्ञान था
शस्त्रों
से उसको
विशेष ही
लगाव था
उसकी
कुंडली में
रानी का
योग था
मन में
उसने अपने
स्वतंत्रता
का बीज बोया था
बुंदेलों
की परम्परा की
यह महान
रानी थी
बुंदेले हरबोलों
के मुहं
हमने सुनी
कहानी थी
खूब लड़ी
मर्दानी वह तो
झाँसी
वाली रानी थी
नारी
उत्थान की वह
एक अनुपम
कहानी थी
1857 की वह
तलवार
पुरानी थी
इस महान
रानी ने
झाँसी की
बागडोर थामी थी
यह कहानी
उसके
बलिदान की
कहानी है
जिसने सब
मे देश प्रेम की
नीव डाली
थी
खूब लड़ी मर्दानी
वह तो
झाँसी वाली रानी थी
खूब लड़ी
मर्दानी वह तो
झाँसी
वाली रानी थी
इस कविता
को पढ़ने के लिए आपका शुक्रिया