Monday 18 December 2017

एक अदद चाँद की ख्वाहिश लिए (ग़ज़ल)

'एक अदद चाँद की ख्वाहिश लिए (ग़ज़ल)

'एक अदद चाँद की ख्वाहिश लिए जी रहा हूँ मैं , यूं ही नहीं
कोशिशों के समंदर में पल - पल खुद को डुबो रहा हूँ मैं,यूंही
नहीं

आरज़ू उस चाँद को ज़मीं पर लाने की कर रहा हूँ मैं , यूं ही नहीं
हर एक आशियाँ, हर एक आँगन हो रोशन , ये आरज़ू , यूं ही नहीं

खुदा के हर एक बन्दे में, उस खुदा के दीदार की आरज़ू, यूं ही
नहीं
हर एक शख्स को तू फ़रिश्ता कर मेरे मौला, मेरी ये इबादत, यूं
ही नहीं

सी सकूं ज़ख्म औरों के , उनके ग़मों को अपना कर लूं , ये
आरज़ू, यूं ही नहीं
हर एक इन्साफ पसंद के दर पर रोशन हो एक चाँद, ये आरज़ू
यूं ही नहीं

पालता हूँ अपने सीने में ज़ख्म, औरों के , यूं ही नहीं
अपने आंसुओं से सींच रहा हूँ मैं अपनी कलम को , यूं ही नहीं

'एक अदद खुले आसमां की चाहत मेरी, ये आरज़ू, यूं ही नहीं
नन्हे लबों पर एक नन्ही  सी मुस्कान ला सकूं , ये आरज़ू: यूं ही
नहीं

बिताये थे अभावों  में जिन्दगी के वो पल, यूं ही नहीं
अपने प्रयासों , अपनी कोशिशों को अपने संघर्ष के लहू सींच रहा
हूँ. यूं ही नहीं

अपनी हर एक सांस से इस गुलशन को रोशन करने की आरज़ू,
यूं ही नहीं
चार कदम, किसी राही का हमसफ़र हो सकूं ये आरज़ू . यूं ही
नहीं

'किसी के लबों पर गीत या ग़ज़ल बन रोशन हो जाऊं ये एहसास,
यूं ही नहीं
“उस” जहां में भी “अंजुम ” उस खुदा के दर का चराग हो रोशन
होने की आरज़ू, यूं ही नहीं







ये जिन्दगी है चार पल की

ये जिन्दगी है चार पल  की

ये जिन्दगी है चार पल  की
प्यार से गुजार दो

हो सके तो प्यार दो
हो सके तो प्यार लो

किसी को अपना लो
किसी के हो जाओ

गीत मुहब्बत के
गुनगुनाते जाओ

किसी के गम को
हो सके तो अपना लो

किसी की राहों में
हो सके तो फूल बिछा दो

किसी के गम में
खुद को शामिल्र करो

किसी को अपनी ख़ुशी का
हिस्सा बना लो

खुदा की राह में
हो सके तो कुछ पल  गुजार लो

किसी के हो जाओ
किसी को अपना लो

खुदा की राह में भी
लिखों कुछ गीत
हो सके तो
उस खुदा के हो जाओ

'चाक दामन , पाक रिश्ते
हर शख्स में खुदा को ढूंढ

'चंद आशार ( अश'आर )  ही सही
उस खुदा की तारीफ मैं लिख जाओ

किसी के होठों की
मुस्कराहट हो जाओ

किसी के दर्द में
उसका हमसफर हो जाओ

हो सके तो
गर्म के पूँट पी लो

हो सके तो
खुशियों का समंदर सजा दो

खिला दो कुछ फूल
इस जहां में खुशियों के

गीत  सुहब्बत के
हो सके तो गुनगुनाओ

भूल जाओ कभी
गिरे थे तुम भी.

हो सके तो
किसी का सहारा हो जाओ

आसमां को छू लो
या आसमां को ज़र्मी पर ले आओ

रिश्तों की मर्यादा कायम रखो
रिश्तों को अपना लो

ये जिन्दगी है चार पल  की
प्यार से गुजार दो

हो सके तो प्यार दो
हो सके तो प्यार लो

किसी को अपना लो
किसी के हो जाओ





मन की वीणा के तार सजाओ

मन की वीणा के तार सजाओ

मन की वीणा के तार सजाओ
मन को सुन्दर भवन बनाओ

मन की व्याकुलता को जानो
इसमें सुर सरिता के पुष्प खिलाओ

सुर सरिता के तार सजाओ.
मन को सुर संगीत से सजाओ

गीतों की एक माला पिरोकर
जीवन को सुर सरिता में बहाओ 

गीतों का एक महल सजाओ
बीणा बादिनी का आसन सजाओ

जीवन का हर पल संगीतमय
पुण्य धरा पर पुष्प खिलाओ

सुर की देवी के चरणों में
पावन गीतों का शौग लगाओ

मन , अंतर्मन हो जाए पावन
संगीत का एक गुलशन सजाओ

मन हो पावन , तन हो पावन
सुर सरिता में हर पल नहाओ

जीवन का कण - कण हो जाए प्रफुल्लित 
सुर सरिता की महफ़िल सजाओ

मन की वीणा के तार सजाओ
मन को सुन्दर भवन बनाओ

मन की व्याकुलता को जानो
इसमें प्रेम के पुष्प खिलाओ 




Monday 4 December 2017

मैं मुस्करा कर ही (ग़ज़ल)

मैं मुस्कुरा कर ही (ग़ज़ल)

मैं मुस्कुरा कर ही , काम चला लेता  हूँ
बड़ी - बड़ी खुशियों को , आम बना लेता हूँ

क्यों उत्सवों मैं , हम समय गंवाएं अपना
मैं रोगों के चेहरे पर मुस्कान लाकर ही , काम चला लेता हूँ

क्यों हम खुद को अहं के , समंदर में डुबोएं 
मैं खास मौंकों को आम बनाकर ही , काम चला लेता हूँ

'गमों के समंदर में भी , खुद को संभाल लेता हूँ
जिन्दगी के हर दौर को , खुदा की मर्जी मान काम चला लेता हूँ

क्यों गिले शिकवों में उलझ  कर , रह जाती है ये दुनिया
हर एक शख्स को खुदा का बन्दा समझ , मैं रिश्ते बना लेता हूँ

आज के इस दौर के गीतों में वो दर्द कहाँ
उस दौर को याद करके ही , अपने गम  भुला  लेता हूँ

अजब सी घुटन है , आज के माहौल में 
कहीं दूर नदी के तीर को , अपना साहिल बना लेता हूँ

'किस किसको सौचूँ, और किसको , भूल्र जाऊं मैं
अपनी कलम को ही अपने ग़मों में , हमसफ़र बना लेता हूँ




मैं चाहता हूँ , एक नए भारत का उदय हो

मैं चाहता हूँ एक नए भारत का उदय हो

मैं चाहता हूँ , एक नए भारत का उदय हो
जहां पले  घर - घर , संस्कार और संस्कृति हो

घर - घर में राम और लखन हों , दशरथ से पिता हों
माता हो केवल एक , कौशल्या सी मातृत्व की धनी हों

न हो कोई वनवास , मिलकर रहते सभी हों
रावण से मुक्त हो देश, कंस को न कहीं जगह हो

बच्चे भाई को भ्राता पुकारें ,  पिता को पिताश्री पुकारें
माँ के संबोधन में , दिल के तार सब जुड़े हों

गलियों में खेलें कान्हा , मटकी से खींचें माखन
मन में राम - राम हो, दिल कृष्ण - कृष्ण हों

पीर पराई हमारी हो जाए, हमारी खुशियाँ दूसरों के ग़मों
का हिस्सा हों
हर घर एक देवालय हो , हर घर एक मस्जिद हो


 गिर पड़े तो उठा ले कोई, रोये तो चुप करा दे कोई 

'एक ऐसे भारत का उदय हो, हर एक व्यक्तित्व शालीन हो


बह हर एक घर के आगे गंगा, भारत ऐसा एक नगर हो

माँ - बाप की सेवा हर एक का धर्म हो जाए, ऐसा भारत
बसर हो


चाणक्य से हों राजनीतिज्ञ , देश हित परम धर्म हो

घोटालों , भष्टाचारियों  , चापलूसों को न यहाँ जगह हो


हर एक दिल में हो देश प्रेम, देश हित मर मिटने का ज़ज्बा
हो

हर - गली हर - घर , हर एक दिल में वन्दे मातरम्‌ हो


मैं चाहता हूँ , एक नए भारत का उदय हो

जहां पले घर - घर ,  संस्कृति और संस्कार हों 






नज़रों के सामने से


नजरों के सामने से

नज़रों के सामने से मुस्कुरा के चल दिए , वो कुछ इस तरह
अपनी मुहब्बत का जाम , पिला के कुछ इस तरह

उनकी बेबाक अदाओं ने खींचा , हमे उनकी ओर कुछ इस तरह
अपनी अदाओं के जाल में कैद , कर रहे हों कुछ इस तरह

मुहब्बत की वेवाकियों का , हमें इल्म न था.
उनकी मुहब्बत के पाश में , हम फंसते गए कुछ इस तरह

मुहब्बत के अंजाम से नावाकिफ़ हो , बढ़े जा रहे थे हम कुछ इस तरह
एहसास तब हुआ जब जिन्दगी, आांसुओं का समंदर हो गयी कुछ इस तरह

उन चंद लम्हों को अपनी जिन्दगी का मकसद कर , जी रहे कुछ इस तरह
एक दिन तो क़यामत का आयेगा , जब रूवरू हंगे हम कद इस तरह

उनके हर एक सितम को , हमने अंजामे - मुहब्बत समझा
पाक इश्क की राह में तनहा , जिन्दगी गुजार रहे हैं हम कुछ इस तरह

नज़रों के सामने से मुस्कुरा के चल दिए , वो कुछ इस तरह
अपनी मुहब्बत का जाम , पिला के कुछ इस तरह

उनकी बेबाक अदाओं ने खींचा , हमे उनकी ओर कुछ इस तरह
अपनी अदाओं के जाल में कैद , कर रहे हों कुछ इस तरह





गीत भंवरों के संगीत के , अब गुनगुनाता नहीं कोई

गीत भंवरों के संगीत के , अब गुनगुनाता नहीं कोई

गीत भंवरों के संगीत के , अब गुनगुनाता नहीं कोई
साज महफिल में मुहब्बत की , अब सजाता नहीं कोई

साँसों को महका दे वो संगीत , अब सजाता नहीं कोई
संस्कृति, संस्कारों से सुसज्जित , चलचित्र अब बनाता नहीं कोई

हर एक काम को कर लिया , लोगों ने अपना पेशा
इंसानियत की राह में , अब खुद को मिटाता नहीं कोई

भौतिकता और विलासिता से परिपूर्ण चरित्र, मानव मन को
लुभाने लगे हैं
आध्यात्म की राह में ,अब अपने पाँव जमाता नहीं कोई

गीत उस खुदा की इबादत के ,अब लिखता नहीं कोई
अपनी ही मुश्किलों में उलझा, दूसरों के ग़मों से रिश्ता बनाता
नहीं कोई

किसी की अँधेरी रातों में, उजाले का दीपक रोशन करता नहीं
कोई
खुदा की राह को , मकसदे - जिन्दगी बनाता नहीं कोई


द्झ के तन पर , अब कपड़ा दिखता नहीं कोई
बीच मझधार डूबते को , अब बचाने आता नहीं कोई

तन पर कपड़े नहीं , हाथों में कटोरा लिए , नज़र आ जाते
हैं चरित्र
'एक रुपये की मदद को , अपने पर्स तक हाथ बढ़ाता नहीं
कोई

दुःख के पहाड़ हर एक की , जिन्दगी का हो गए हिस्सा
वरना खुदा के दर पर , सजदा करने आता नहीं कोई

किसी को क्या सिला दें , किसी को क्या दें नसीहत
इन बेमानी रिश्तों में , अपना भी काम आता नहीं कोई

गीत भंवरों के संगीत के , अब गुनगुनाता नहीं कोई
साज महफ़िल में मुहब्बत की , अब सजाता नहीं कोई