Thursday 23 March 2017

हे पावन परमेश्वर मेरे

हे पावन परमेश्वर मेरे

हे पावन परमेश्वर मेरे , पूर्ण करो मनोरथ मेरे
दीनन के हो तुम रखवारे , पावन करते कर्म हमारे

चन्दन सा तुम पावन कर दो, हे प्रभु भक्तन के रखवारे
हे पावन परमेश्वर मेरे, पूर्ण करो मनोरथ मेरे

भवसागर से पार उतारो, चरण कमल पखारें तेरे
वीच भंवर में फंसी है नैया, पार उतारो प्रभु मेरे

सीधा - सादा जीवन हो प्रभु, हम सब आये चरण तिहारे
जीवन बंधन मुक्त करो प्रभु, विनती करते द्वार में तेरे

पर - उपकार हमें सिखलाओ , चरणों से प्रभु हमें लगाओ
संकल्प मार्ग हमको दिखलाओ , करो अनमोल वचन प्रभु मेरे

अवगुण मेंरे दूर करो प्रभु, संकल्प सजाओ मेरे
हे पावन परमेश्वर मेरे, पूर्ण करो मनोरथ मेरे





चंद नए एहसास - मुक्तक

१.


वो दोस्त ही क्या जिसे हम मना न सकें

वो रिश्ते ही क्या  जिन्हें हम निभा न सकें

२.

वो आदमी हे क्या जो उस खुदा से दिल लगा न सके

वो गुरु ही क्या  जो किसी की जिन्दगी को दिशा दिखा न सके


3.


वो नाव ही क्या  जिसमे पतवार न हो
वो तलवार ही क्‍या जिसमे धार न हो

वो आदमी भी आदमी क्या जिसे जिन्दगी से सरोकार न हो
वह सत्य भी सत्य कैसा जिसका कोई आधार न हो

4.

वो गीत ही क्या जिसमे कोई राग न हो
वो पुस्तक भी पुस्तक क्या जिसमे कोई विचार न हो

वह आदमी भी आदमी क्या जिसका कोई आदर्श न हो.
वह प्रयास भी कैसा प्रयास जिसकी कोई मंजिल न हो

5.


जो दिल में उतर जाए ऐसा गीत लिखों
जो राह के कांटे चुन ले ऐसा मीत चुनो

जो खुशबुओं से सराबोर हों ऐसे पुष्प चुनो
जो जिन्दगी का अमृत हो जाएँ ऐसे कर्म चुनो






Wednesday 22 March 2017

विचारों की अपनी धरती , विचारों का अपना अम्बर

धरती , विचारों का अपना अम्बर

विचारों की अपनी धरती, विचारोंका अपना अम्बर
विचारों का अपना सत्य, विचारों की अपनी पावनता

विचारों का अपना स्वर्ग, विचारों का अपना धर्म
विचारों की पावनता से, पवित्र हो तन और मन

विचारों की कुटिलता से, पल में स्वर्ग हो नरक
विचारों का अपना सूर्य, विचारों का अपना चन्द्र

विचारों का अपना संयम , विचारों की अपनी पवित्रता
विचारों की अपनी निश्छलता , जीवन में करती उजाला

विचारों की अपनी निर्मलता, विचारों की अपनी चेतना
विचारों के सुसंकल्प से , वाणी में रचती बसती उदारता

विचारों का अपना अमृत, विचारों का अपना विष
विचारों की अपनी कठोरता, विचारों की अपनी कोमलता

उत्कृष्ट विचारों से जीवन में आता उत्कर्ष और उन्नति
सद्विचारों के प्रकाश से , छंट जाता जीवन का अन्धेरा

विचारों का अपना ज्ञान , विचारों का अपना अज्ञान
विचारों की अपनी सरिता , विचारों का अपना समंदर

विचारों की अपनी सीमा, विचारों की अपनी सार्थकता
विचारों का अपना यश, विचारों का अपना अपयश

विचारों की शिष्टता , जीवन में लाती कुलीनता
विचारों की अपनी सजीवता, विचारों की अपनी निर्जीवता

जीवन को अपने सद्विचारों से पुष्पित कर अभिनन्दन राह पर बढ़ो
सद्‌विचारों से स्वयं को पोषित कर , स्वयं को पुष्पित करो

सदविचारों के चिंतन को अपने जीवन की धरोहर कर लो 
कुविचारों के बंधन से मुक्त हो मुक्ति की राह तुम चलो

Monday 20 March 2017

बहुत से नज़ारे थे मेरे आशियाने में


बहुत से नज़ारे थे मेरे आशियाने में

बहुत से नज़ारे थे मेरे आशियाने में
मैं यूं ही भटकता रहा ज़माने में |

मुझे एहसास ही न था अपनी खुशियों का
मैं यूं ही उन्हें ढूंढता  रहा वीराने में |
 
खुदा के करम, उसकी रहमत को मैं समझ सा सका
मैं यूं ही गिले - शिकवे करता रहा उसके इबादतखाने में |

उसकी मुस्कराहट को मैं मुहब्बत समझ बैठा
उनसे रूवरू हुआ मैं किसी और के आशियाने में |

मेरी जिन्दगी का इख्तियार उस खुदा के हक में था
मैं खुद को यूं ही ढूंढता रहा जिन्दगी के मैखाने में |

मेरे अपनों ने दिया मुझे सुकून बहुत
अपनों को तलाशता रहा मैं अनजानों में |

अपने अं में डूबा रहा वो जिन्दगी भर
बरसों लगे उसे खुद को मनाने में |

चंद खुशियाँ क्या नसीब  हुईं वो खुद को समझ बैठे खुदा
एक वक़्त ऐसा भी आया जब उसे खुद को पाया वीराने में |

बहुत से नज़ारे थे मेरे आशियाने में
मैं यूं ही भटकता रहा ज़माने में |

मुझे एहसास ही न था अपनी खुशियों का
मैं यूं ही उन्हें ढूंढता  रहा वीराने में ||







मेरे मालिक मेरी सरकार हो तुम कान्हा

मेरे मालिक मेरी सरकार हो तुम कान्हा

मेरे मालिक मेरी सरकार हो तुम कान्हा
मेरे सपनों का आधार हो तुम कान्हा |

जी रहा हूँ पल --पल तेरे नाम के साथ
मेरे जीवन का आधार हो तुम कान्हा |

रोशन हो शख्सियत , मेरी तेरे दम से
मेरा गौरव, मेरा सम्मान हो तुम कान्हा |

तुझे बयाँ करूं तो बयाँ करूं कैसे
तेरी तारीफ़ में लिखूं तो कया लिखूं कान्हा |

मुसाफिर कर मुझे न भटकाना
अपने चरणों की धूलि कर लो कान्हा |

मेरी जिन्दगी तेरी छाया में हो रोशन
इस नाचीज़ को अपना बना लो कान्हा |

बेशुमार तारों से जगमगा रहा ये जहां
मुझको भी एक तारा बना दो कान्हा |

मेरे नसीब में हो एक इबादत तेरी
अपने प्यारों में मुझे शामिल करो कान्हा |

मेरे मालिक मेरी सरकार हो तुम कान्हा
मेरे सपनों का आधार हो तुम कान्हा |

जी रहा हूँ पल --पल तेरे नाम के साथ
मेरे जीवन का आधार हो तुम कान्हा ||





Wednesday 15 March 2017

मेरे देश मेरा गर्व हो तुम

मेरे देश मेरा गर्व हो तुम

मेरे देश ,मेरा गर्व हो तुम
मेरा सपना, मेरा आसमान हो तुम |

मेरे नयनों से बहते नीर का ,मर्म हो तुम
सभी धर्मों का .विस्तार हुए तुम |

मेरे देश ,मेरा गर्व हो तुम |

आर्यभट्ट , चाणक्य का चरित्र हुए तुम
सम्राट अशोक तो कभी .विक्रमादित्य हुए तुम |

शून्य का इतिहास बनकर ,विश्व में छाये
कभी बुद्ध तो कभी  ,महावीर हुए तुम |

खिलाये फूल .विश्व शान्ति के जिसने
कभी सोने की चिड़िया , कभी पावन गंगा हो तुम |

उपदेश जिसके दुनिया का ,संस्कार हो गए
कभी नानक, तो कभी कृष्ण की पावन भूमि हुए तुम |

कभी तुम ताज बन निखरे, कभी कुतुबमीनार हुए तुम
कभी सम्राट अशोक तो कभी अकबर का ,ख़वाब हुए तुम |

कभी दुर्गा तो कभी राम का ,अवतार हुए तुम
कभी तुम हिन्द हुए तो कभी हिन्दुस्तान हुए तुम |

मेरे  देश ,मेरा गर्व हो तुम
कभी अधर्म पर धर्म की ,जीत बन संवरे |

धर्मयुद्ध का क्षेत्र “कुरुक्षेत्र “ हुए तुम
मेरा देश ,मेरा गर्व हो तुम |

तीर्थ स्थलों का संगम हो तुम
कृष्ण, कबीर , नानक , राम की पुण्यभूमि हुए तुम |

विश्व में अहिंसा रुपी विचार की ,गूँज  हो तुम
मेरे देश ,मेरा गर्व हो तुम |

सभी धर्मों को अपने आँचल में ,समेटे हो तुम
मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरद्वारा हो तुम |

शबद , अजान, प्रार्थना तो कहीं ,मंत्रोच्चार हो तुम
मेरे देश मेरा गर्व हो तुम |

कहीं नर्मदा तो कहीं कालिंदी का ,मधुर संगीत हो तुम
कहीं पर्वतों से अचल, तो कहीं हिमालय का शुरूर हो तुम |

पीरों की तो कहीं संतों की ,पुण्य धरा हो तुम
मेरे देश ,मेरा गर्व हो तुम |

कभी पंचतंत्र तो कभी , कबीर , तुलसी, सूर के दोहे हुए तुम
कभी  लक्ष्मीबाई तो कभी ,दुर्गावती हो तुम |

कभी कर्ण का धर्म तो कहीं विक्रमादित्य का ,सत्य हुए तुम
मेरे देश ,मेरा गर्व हो तुम |

कभी सत्य साईं बन निखरे तो कहीं .शिर्डी साईं हुए तुम
कभी सत्य का परचम तो कभी धर्म का ,आगाज़ हो तुम |

कभी कर्म की महिमा तो कभी ,भक्ति रस हो तुम
मेरे देश ,मेरा गर्व हो तुम
कभी दुर्वासा का क्रोध तो कभी वाल्मीकि की सहदयता हुए
तुम |

कभी पृथ्वीराज चौहान तो कभी ,महारणा प्रताप हुए तुम
क्षमा जो दुश्मन को भी करे ,वो सद्विचार हुए तुम |

गाँधी बन जो ,विश्व में छाया
सत्य और अहिंसा का .प्रचार हुए तुम 
भिन्न - भिन्न संस्कृतियों का ,समंदर हो तुम
मेरे देश ,मेरा गर्व हो तुम |

कभी  विवेकानंद तो कभी ,श्रीकृष्ण परमहंस हो तुम
मेरा कल और ,मेरा आज हुए तुम
कभी मिसाइल मैन तो कभी अर्थशास्त्र का ,नोबेल पुरस्कार हुए
तुम |

कभी  तुम विश्व का आधार , कभी संस्कार हुए तुम
कभी योगा का विस्तार , कभी संतों की वाणी का आगाज़ हुए
तुम |

कभी संगीत तो कभी  शास्त्रों का आधार हुए तुम
कभी गीता तो कभी ,रामायण की पुकार हुए तुम |

कभी खिलते तुम उपवन से , कभी इबादत का विस्तार हुए तुम
मेरे देश मेरा गर्व हो तुम मेरे देश मेरा गर्व हो तुम |

मेरे देश ,मेरा गर्व हो तुम
मेरा सपना, मेरा आसमान हो तुम |

मेरे नयनों से बहते नीर का ,मर्म हो तुम
सभी धर्मों का .विस्तार हुए तुम ||




हम अपने वतन की माटी को

हम अपने वतन की माटी को

हम अपने वतन की माटी को , अपने माथे से लगा लेंगे
खिला देंगे कुछ फूल इस धरती पर , इसे उपवन बना देंगे |

भारत माँ के सपूतों के दिल में, वतन परस्ती का ज़ज्बा जगा देंगे
शहीदों की मजारों पर हर बरस मेले लगा देंगे |

जियेंगे इस धरती पर तेरे बेटे बनकर , तेरी खातिर हम अपनी जां लुटा
देंगे
भारत  माँ तेरे सपूत हैं हम, तुझे जो घूरकर देखे उसे मिटटी में मिला देंगे |


तेरे ऑचल में पाया है जीवन हमने, तुझ पर कुर्बान अपना सर्वस्व कर ..
देंगे
बुरी निगाह जो डाली किसी ने तुझ पर , उस दुश्मन का हम नामों - निशाँ मिटा देंगे  |

हम अपने वतन की माटी को , अपने माथे से लगा लेंगे
खिला देंगे कुछ फूल इस धरती पर , इसे उपवन बना देंगे |

हम अपने वतन की माटी को , अपने माथे से लगा लेंगे
खिला देंगे कुछ फूल इस धरती पर , इसे उपवन बना देंगे |

भारत माँ के सपूतों के दिल में, वतन परस्ती का ज़ज्बा जगा देंगे
शहीदों की मजारों पर हर बरस मेले लगा देंगे ||



व्यंग्य

व्यंग्य 

'एक नेता ,अपने भाषण  में 100 बार

गधे का नाम ले चुके ,

 तभी

एक गधा , मंच पर लपक कर आया

नेता गुर्राया  ,“इस गधे को नीचे उतारो”

तभी गधा , बड़े ही मासूमियत भरे अंदाज़ में बोला

नेता जी
अभी - अभी आपने अपने भाषण में 100 बार मेरे नाम का गीत
गुनगुनाया

तभी तो मेरा मन , मंच पर आने को ललचाया

गधे ने आगे कहा “मैंने  सोचा मेरे भी अच्छे दिन आयेंगे “

“अब तक गधों की खूब सेवा की चलो कुछ दिन राजनीति में बिताएंगे ”



मुहब्बत के राही

मुहब्बत के राही

मुहब्बत के राही ,जिन्दगी को यूं तनहा गुजारा नहीं करते
मिले जो दामन किसी का , उसे ठुकराया नहीं करते |

चलते हैं जो मुहब्बत की राह, किसी को यूं सताया नहीं करते
मुहब्बत के राही जिन्दगी को यूं तनहा गुजारा नहीं करते |

गुजारिश उस खुदा से , कोई गुमराह न हो
जीते हैं जो गुमसुम , वो किसी को रुलाया नहीं करते |

मुहब्बत के राही मुहब्बत करने वालों को , यूं भरमाया नहीं करते
खुदा के चाहने वाले , किसी को यूं भटकाया नहीं करते |

जीते हैं जो खुद , सिसकती सांसों के साथ
वो किसी गमगीन को , यूं सताया नहीं करते |

इंसानियत के रखवाले , किसी को यूं बीच राह छोड़ा नहीं करते
बीती बात बिसारिये , यूं दुश्मनी को दिल से लगाया नहीं करते |

मुहब्बत के राही जिन्दगी को यूं गुजारा नहीं करते
मिले जो दामन किसी का , उसे ठुकराया नहीं करते |

चलते हैं जो मुहब्बत की राह, किसी को यूं सताया नहीं करते
मुहब्बत के राही जिन्दगी को यूं गुजारा नहीं करते |

मुहब्बत के राही ,जिन्दगी को यूं तनहा गुजारा नहीं करते
मिले जो दामन किसी का , उसे ठुकराया नहीं करते |

चलते हैं जो मुहब्बत की राह, किसी को यूं सताया नहीं करते
मुहब्बत के राही जिन्दगी को यूं तनहा गुजारा नहीं करते ||


जिन्दगी से हो गयी जिन्हें नफ़रत

जिन्दगी से जिन्हें हो गयी नफ़रत

जिन्दगी से जिन्हें हो गयी नफ़रत
मधुशाला को अपना आशियाँ कर लिया.|

डुबोकर मधुरस की दुनिया में खुद को
जिन्दगी की परेशानियों से किनारा कर लिया |

मधुशाला से रिश्ता रखने वाले
जीवन कहाँ जिया करते हैं |

पीते हैं घूँट - घूँट मौत की
जीवन का अंत जिया करते हैं |

पत्र - पत्र घूँट - घूँट पर मरने वाले
जीवन से रिश्ता कहाँ रखते हैं |

सोमरस पर मरने वाले
खुद की परवाह कहाँ करते हैं |

जीते हैं बोतल की खातिर
मरते हैं बोतल की खातिर |

दुनिया मैं कीड़ों से रैंगते
दुनिया की परवाह कहाँ करते हैं |

जीवन इनका मधुशाला है.
ये देवालय की बात कहाँ करते हैं|

रिश्ते - नाते सब बेगाने
खुद से भी ये रिश्ता कहाँ रखते हैं

जिन्दगी से जिन्हें हो गयी नफ़रत
मधुशाला को अपना आशियाँ कर लिया.|

डुबोकर मधुरस की दुनिया में खुद को
जिन्दगी की परेशानियों से किनारा कर लिया ||





Thursday 9 March 2017

शिक्षक


शिक्षक

शिक्षक को मर्यादा की सीमाओं में न बांधो
उसके भी दिल में पत्ते हैं सपने |

उसे ही यूं कर्तव्यपरायणता का सिंबल न
बनाओ
उसके भी दिल में आरजू है बहुत |

उसे बन्धनों में यूं न जकड़ो
उसके भी अपने कुछ सामाजिक दायित्व हैं |

क्यों उसे रोकते हो अपने मन की करने से
उसकी भी अपनी उड़ान है 
उसे एक कमरे के दायरे में न समेटो |

उसके भी अपने आसमान हैं
गलती पर उसे माफ़ी नहीं है क्यों |