Saturday 28 February 2015

चरित्रों की वर्तमान श्रृंखला में

चरित्रों की वर्तमान श्रृंखला में

चरित्रों की वर्तमान श्रृंखला में
आदर्शों की पूंजी
बिखरी – बिखरी सी

संस्कृति और संस्कारों की प्रतिष्ठा
नीर – नीरस सी

भावनायें और संवेदनायें स्वयं को
टटोलती – टटोलती सीं

विचारों की मौलिकता
एवं
मर्यादित व्यवहार
एक दूसरे को
खोजतीं – खोजतीं सी

चरित्रों की वर्तमान श्रृंखला में
मानवता और सहृदयता
ढूंढती – ढूंढती सी

राष्ट्रीयता और एकता
विस्मय से एक दूसरे को
देखती – देखती सी

आत्मीयता और उदारता
एक दूसरे पर
हंसती – हंसती सी

चरित्रों की वर्तमान श्रृंखला में

इंसानियत और ईश्वरता
प्रश्नवाचक चिन्ह में
एक दूसरे को
घूरती – घूरती सी

कुटिल विचारों से परिपूर्ण
आधुनिक संस्कृति

लिव – इन – रिलेशन से उपजते
आधुनिक संस्कार

पेशेवर हुए
मर्यादा के बाज़ार

इन्टरनेट से विकसित होता
असामाजिकता का संसार

वर्णशंकर रुपी आधुनिक
गंधहीन पुष्पों से
रचता – बसता संसार

क्या नास्तिकता की
आस्तिकता पर
विजय को क रहा चरितार्थ

क्या आधुनिकता का यह रूप
वर्तमान सामाजिक परिवेश को
कर रहा संबल प्रदान

क्या प्रासंगिक मन्त्रों पर
चढ़ रहा
इन्टरनेट रुपी
आधनिक मन्त्रों का प्रभाव

क्यों ये परिवर्तन , क्यों ये कुठाराघात
क्यों नहीं भाते हमें
संस्कृति और संस्कार

क्यों नहीं जागती हममे
संवेदना और सहृदयता

क्यों नहीं है आत्मीयता और उदारता से साथ

क्यों हुए हम इन
वर्तमान चरित्रों की
श्रृंखला के पात्र

क्यों हुए हम ....................








Wednesday 25 February 2015

वक़्त की मशाल से खुद को रोशन करो - मुक्तक

१.


वक़्त की मशाल से
खुद को रोशन करो

वक़्त को ढाल बना ,
खुद को शिखर पर धरो

वक़्त से नादानियां
अनजाने में भी न करना

वक़्त की महिमा को जान
खुद को बुलंद करो


२.

बुजुर्ग को तुम जी भर सम्मान दो
अनुभवों को तुम धरोहर मान लो

बुजुर्गों के आशीर्वाद तले पलते सपने
उनके आशीष से , तुम जीवन संवार लो


3.


उन्हें हमारी मुहब्बत न थी कुबूल
फिर भी हम मुहब्बत में दीवाने हुए

बेक़सूर थे हम फिर भी बेआबरू हुए
खता हमसे ये हुई हम उनसे रूबरू हुए


4.


नेकदिल समझ हमने
उन पर भरोसा किया

उनके फरेब का हमें
ज़रा भी न इल्म था

सौंप दी जिन्दगी
इनकी राहों में हमने

उन्हें हमारी नेकदिली पर
एतबार न था


5.


फ़साना हो रही आज की जवानियाँ
संस्कृति आज झेलती वीरानियाँ

संस्कारों के लग नहीं रहे मेले
फ़साना हो रहीं आज ये निशानियाँ

६.


दुपट्टे का कोना मुंह में
दबा रहे हैं वो

खुद मन ही मन
लजा नही वो

बैचेनी दिल की
महसूस कर रहे हैं वो

फिर भी न जाने
क्यूं शर्मा रहे हैं वो





अजीब कशमकश के दौर से गुजर रहे हैं हम - मुक्तक

१.


अजीब कशमकश के दौर से गुजर रहे हैं हम

चाहकर भी किसी की अँधेरी रात में रोशनी नहीं कर रहे हैं हम

अफसाना हो गयी हैं उस दौर की बीती बातें

आजा किसी गिरते को सहारा नहीं दे रहे है हम

२.


अरमां तो थे किसी की आँखों के नूर हो जायें 

पर  किसी के होठों पर मुस्कान बिखेर नहीं रहे हैं हम

अपनी ही मुसीबतों का रोना पीटते हैं हम

किसी रोते को हंसाते नहीं हैं हम



3.


तेरी रहमत तेरे करम की आरज़ू हमको

तेरे रहम तेरी जन्नत की आरज़ू हमको

आशिक हो जाएँ तेरे , इबादत में तेरी

तेरे दीदार तेरे आसरे की आरज़ू हमको 



4.


ये इत्तफाक है या मेरी किस्मत ऐ मेरे खुदा

तेरी इबादत के नूर से रोशन आशियां मेरा

ईमान मेरा ,तेरे करम से तेरी अमानत हो गया

मेरी खुशनसीबी है कि मैं तुझ पर कुर्बान हो गया




Tuesday 24 February 2015

उसकी निर्दोष आँखों से झांकता बचपन



उसकी निर्दोष आँखों से झांकता बचपन


उसकी निर्दोष आँखों से झांकता बचपन
उससे प्रश्न करता

"क्या यही है जीवन"


बालपन के नज़ारे
बालपन की अठखेलियाँ
रूठने मनाने का दौर
चंचलतापूर्ण व्यवहार


नखरों के अंबार
चीजों का बाज़ार
खिलौनों का संसार
अजब खेलों का संसार


खेलने और खाने का त्यौहार
यौवन की दहलीज पर खड़ी
उसकी सपनों से सजी
आँखों ने प्रश्न किया


"क्या यही है जीवन "


आँखों में यौवन का जोश
आकर्षण का विषम दौर
इच्छाओं और कामनाओं की कामपूर्ण अभिलाषा


मन में उठता प्रश्नों का दौर
शारीरिक आकर्षण का दौर
कुछ कर गुजरने की ललक
स्वयं को ही पूर्ण कहने का चलन


स्वयं को स्थापित करने का दौर
जीवन के अर्थ को समझने की चाह


वृद्धावस्था की दहलीज पर खड़ा
वही व्यक्ति
अपने सजल नेत्रों से स्वयं से वही प्रश्न कर रहा


"क्या यही था जीवन "

जीवन के मर्म को समझने की इस अवस्था में
उसने स्वयं ही इस प्रश्न को अमान्य कर दिया


जीवन की उपब्धियों व अनुपलब्धियों के बीच
कसता जीवन


मानव के मानव होने का
एहसास भी नहीं होने देता
स्वयं की जय में लीन मानव
जीवन की जय के बोध से अनजान


जीवन की आवश्यकताओं के
ज्वार भाटे में
डूबता उतरता मानव
आशा निराशा के झूले में
हिलोरें खाता मानव

उन्नति अवनति की डोर में बंधा मानव

आस्तिकता नास्तिकता के भंवर में
स्वयं को ढूँढता मानव

क्या यही अँधेरा कुआं
जीवन का सच

कहीं ऐसा तो नहीं
कुछ छोड़ दिया मैंने

काश मैंने वैसा किया होता
तो अच्छा होता

काश मैंने स्वयं पर नियंत्रण रखा होता
तो अच्छा होता


काश मैं जीवन के मर्म को समझ पाता
तो अच्छा होता

काश मेरा भी एक गुरु होता
जो राह दिखाता
मार्ग प्रशस्त करता


क्या सामाजिक बंधन ही जीवन का सच
या इससे परे भी बहुत कुछ
कुछ मैंने बोया भी था या
केवल काटने की चाह


जीवन के अंतिम क्षणों में
स्वयं से प्रश्न कर रहा मानव
"क्या यही था जीवन "
"क्या यही था जीवन "
"क्या यही था जीवन "


मेरे पास



मेरे पास


मेरे पास


खुशबुओं का बसेरा हो
चांदनी से भरपूर अँधेरा हो


मेरे पास

फूलों की खुशबू से महकता उपवन हो


मेरे पास

प्रेयसी का महकता बदन हो


मेरे पास

संस्कृति व् संस्कारों से भरपूर सवेरा हो


मेरे पास

माता पिता के आशीर्वादों से भरा सवेरा हो


मेरे पास

सितारों से भरा आसमां हो


मेरे पास

उस परमेश्वर के भक्ति रस से परिपूर्ण जीवन हो


मेरे पास

प्रकृति का आलिंगन हो


मेरे पास


मेरे पास हो और भी बहुत कुछ ..........


आत्म निर्भर जो तुम हो जाओगे


आत्म निर्भर जो तुम हो जाओगे


आत्म निर्भर जो तुम हो जाओगे

मंजिल को करीब पाओगे


बलशाली जो तुम हो जाओगे

बुराइयों को मिटाओगे


स्वच्छ विचार जो तुम अपनाओगे

समाज को राह दिखाओगे

आदर्शों को जो तुम अपनाओगे

हर जगह सम्मान पाओगे


कर्मपरायण जो तुम हो जाओगे

मन चाहे मनोरथ पाओगे

शिक्षा को जो तुम अपनाओगे

अभिनन्दन मार्ग पर जाओगे

सादा जीवन जो तुम अपनाओगे

स्वच्छ विचार पाओगे

प्रभु को जो तुम दिल में बसाओगे

मुक्ति राह पर जाओगे


आस्तिक जो तुम हो जाओगे

भक्ति मार्ग को पाओगे

स्वाभिमानी जो तुम हो जाओगे

उत्कर्ष मार्ग को पाओगे


सात्विक विचार तुम जो अपनाओगे

सादा जीवन पाओगे

सदाचारी जो तुम हो जाओगे

अभिनन्दन मार्ग को पाओगे


अल्पभाषी जो तुम हो जाओगे

उर्जावान हो जाओगे

मृदुभाषी जो तुम हो जाओगे

सबके दिल में जगह बनाओगे

दूरदर्शी जो तुम हो जाओगे

उच्च शिखर को पाओगे

संवेदनशील जो तुम हो जाओगे

मानवता की ज्योत जगाओगे

निर्विकार जो तुम हो जाओगे

आदर्श तन खिल जाओगे

परोपकारी जो तुम हो जाओगे

इंसानियत की अलख जगाओगे


सेवा को जो तुम धर्म बनाओगे

लोक सेवक हो जाओगे

शुभ इच्छा तुम जो जगाओगे

वन्दनीय हो जाओगे

धार्मिक जो तुम हो जाओगे

धर्म के रक्षक कहलाओगे

सत्य राह जो तुम अपनाओगे

प्रभु के प्यारे हो जाओगे

संकल्प राह तुम जो जाओगे

मंजिल को करीब पाओगे

कर्म राह तुम जो अपनाओगे

उच्च शिखर को पाओगे