Wednesday 9 May 2012

धरा पर आज भी ईमान बाकी है

धरा पर आज भी ईमान बाकी है

धरा पर आज भी
 ईमान बाकी है
धरा पर आज भी
इंसान बाकी है
यदि ऐसा नहीं होता
तो भोपाल त्रासदी देख
मन  सबका  रोता क्यों
धरा पर आज भी
 ईमान बाकी है
धरा पर आज भी
इंसान बाकी है
यदि ऐसा नहीं होता
तो सुनामी देख
मन  सबका  रोता क्यों
धरा पर आज भी
 ईमान बाकी है
धरा पर आज भी
इंसान बाकी है
यदि ऐसा नहीं होता
तो लातूर का विनाश देख
मन  सबका  रोता क्यों
धरा पर आज भी
 ईमान बाकी है
धरा पर आज भी
इंसान बाकी है
यदि ऐसा नहीं होता
तो म्यामार का आघात देख
मन सबका पसीजा क्यों
धरा पर आज भी
 ईमान बाकी है
धरा पर आज भी
इंसान बाकी है
यदि ऐसा नहीं होता
तो गाजापट्टी में नरसंहार देख
मन सबका व्याकुल होता क्यों
धरा पर आज भी
 ईमान बाकी है
धरा पर आज भी
इंसान बाकी है
यदि ऐसा नहीं होता
तो मंदिरों में भीड़ का
अम्बार नहीं होता
मंत्रोच्चार नहीं होता

मस्जिद में अजान
सुनाई न देती
CHURCH में घंटों की आवाज
सुनाई  न देती
गुरुद्वारों में पाठ
सुनाई न देता
मानव के हाथ
दुआ के  लिए
न उठ रहे होते
गरीबों का कोई
सहाई न होता
यदि ऐसा नहीं होता
तो धरती पर
कोई किसी की बहिन नहीं होती
कोई किसी का भाई नहीं होता   
धरा पर आज भी
 ईमान बाकी है
धरा पर आज भी
इंसान बाकी है
गिरते को कोई
उठा रहा न होता
बहकते को कोई
संभल न रहा होता
ये मानव की नगरी है
यहाँ देवों का वास होता है
ये संतों की नगरी है
यहाँ संतों का वास होता है
धरा पर आज भी
 ईमान बाकी है
धरा पर आज भी
इंसान बाकी है








ज़िन्दगी
ज़िन्दगी मुझे तुझे पाना है
तुझे ही ज़िन्दगी
पाने के रास्ते
मुझे बताना है
चलूँ किस राह पर
कि मानवता शर्मशार न हो
कहूँ क्या बात कि
किसी का दिल
बेजार न हो
ज़िन्दगी मुझे तुझे पाना है
तुझे ही मुझे ज़िन्दगी
पाने के रास्ते बताना है
ज़िन्दगी तुझे क्या रंग दूं
कि तारे जगमगा उठें
तुझे क्या ढंग दूं
कि सारा जग खिलखिला उठे
किस फूल का साथ लूं
कि गुलशन बहार हो जाए
ज़िन्दगी मुझे तुझे पाना है
तुझे ही मुझे ज़िन्दगी
पाने के रास्ते बताना है
क्या करूं कि
सबके दिल में उतर जाऊं
कैसा दिखूं कि
सबकी आँखों का नूर हो जाऊं
दे ऐसे अलंकरण कि
दूसरों का आदर्श बन जाऊं
बिछा दे राह में मोती
कि सब पर सर्वस्व लुटाऊँ
ज़िन्दगी मुझे तुझे पाना है
ज़िन्दगी पाने के रास्ते
तुझे ही मुझे बताना है
क्या  दूं किसी को
कि किसी कि
ज़िन्दगी में बहार आ जाए
मानवता मानवता रहे
ज़िन्दगी ज़िन्दगी रहे
मौत पतवार हो जाए
मौत पतवार हो जाए
ज़िन्दगी मैंने तुझे
पा लिया है                 
तूने मुझे ज़िन्दगी
पाने के रास्ते बता दिया है
ज़िन्दगी मैंने तुझे
पा लिया है
ज़िन्दगी मैंने तुझे
पा लिया है


कविता ऐसे करो

कविता ऐसे करो
कविता ऐसे करो की मन की कल्पना साकार हो जाए
अक्षरों से शब्द बनें विचार अलंकार हो जाए
विचार हों ऐसे कि बुराई शर्मशार हो जाए
मिले समाज को नए विचार कि हर एक कि जिंदगी गुलजार हो जाए
कविता ऐसे करो की मन की कल्पना साकार हो जाए
छोड़ो तीर शब्दों के कुविचारों पर कि धरा पुण्य हो जाए
मिटा दो आंधियां मोड़ दो रास्ते तूफानों के जिंदगी पतवार हो जाए
कविता ऐसे करो की मन की कल्पना साकार हो जाए
बहा दो ज्ञान की गंगा मिटा अँधियारा भीतर का
कि जीवन जगमग हो जाए
रहे न कोई अछूता ज्ञान गंगा से कि जीवन पवित्र संगम हो जाए
कविता ऐसे करो की मन की कल्पना साकार हो जाए
मिटाकर बुराई को,
मिटा मन के अँधेरे को
कि ज़िन्दगी आशा का दीपक हो जाए
बनो ऐसे बढ़ो ऐसे रहो ऐसे
कि आसमां से तारे फूल बरसाएं
कविता ऐसे करो की मन की कल्पना साकार हो जाए
करो  शब्दों के प्रहार छोड़ो शब्दों की बौछार
कि ज़िन्दगी काँटों के बीच फूल कि मानिंद हो जाए
जियो ऐसे धरा पर बनो ऐसे धरा पर
कि खुदा भी जन्नत छोड़ धरा पर
तुझे आशीर्वाद देने आ जाए
तुझे गले लगाने आ जाए
कविता ऐसे करो की मन की कल्पना साकार हो जाए




मै बिन पखों के

मै बिन पंखों के
मै बिन पंखों के
उड़ना चाहता हूँ
नै आसमां से
दुनिया देखना चाहता हूँ
सुना है  आसमां से
दुनिया सुन्दर दिखती है
खुली आँखों से
ये नज़ारे लेना चाहता हूँ
मै बिन पंखों के
उड़ना चाहता हूँ
आसमां में तारे हैं
बहुत से
मै पास जाकर
इनको  छूना चाहता हूँ
सुना है चाँद भी
दिखता है निराला
मै चाँद पर जाकर
उसे निहारना चाहता हूँ
मै बिन पंखों के
उड़ना चाहता हूँ
फूलों की  खुशबू ने
किया है मुझको कायल
मै भंवरा बन फूलों का
रस लेना  चाहता हूँ
किस्से कहानियों से
मेरा नाता पुराना
मै परी की
कहानी सुनना चाहता हूँ
मै बिन पंखों के
उड़ना चाहता हूँ
मै कोयल बन
मधुर गीत गाना चाहता हूँ
मै कवि बन जीवन में
रौशनी लाना चाहता हूँ
मै शिक्षक बन
ज्ञान विस्तार करना चाहता हूँ
मै बिन पंखों के
उड़ना चाहता हूँ
समर्पण की भावना ने
किया मुझको प्रभावित
मै पृथ्वी की तरह
महान बनना चाहता हूँ
देश भक्ति का जज्बा भी
मुझमे कम नहीं है
मै भगत,सुखदेव
और बिस्मिल बनना चाहता हूँ
मै बिन पंखों के
उड़ना चाहता हूँ
दिखने में छोटा साथ बाती
पर अँधेरे पर है बस उसका
मै अपनी जिंदगी को
दीपों की माला में पिरोना चाहता हूँ
मै दीप बन सबकी जिंदगी को
रोशन करना चाहता हूँ
मै बिन पंखों के
उड़ना चाहता हूँ
मै आसमां से
दुनिया देखना चाहता हूँ

तस्वीरें

तस्वीरें
बनाई मैंने कुछ तस्वीरें
पसंद नहीं आईं किसी को
कुछ तस्वीरों में
हाथ नहीं
कुछ में पैर नहीं
कहीं एक आँख में दृष्टव्य
आदमी
कहीं जलते हाथ को
ठंडक देने के प्रयास में
एक औरत
कहीं दहेज के नाम पर
रस्सी पर झूलती
सुंदर नारी
कुछ चरित्र
अनमने से
अपने विचारों
में खोये
शायद जीवन को
समझने की
कोशिश में
कुछ बुत बने
जीवन पाने की
लालसा में
वर्षों से बिस्तर पर
कोमा की सी
स्थिति में
कुछ कर्म के मर्म को
जानने के प्रयास में
कर्मरत दीखते हुए
कुछ तस्वीरें ऐसी
जिसमे मानव
मानव को समझाने का
असफल प्रयास करता हुआ
कहीं दूसरी और
नारी की
व्यथा
समाज पर
प्रहार करती हुई
एक तस्वीर
ऐसी
जो सदियों से
हो रहे
सामाजिक परिवर्तन
को दर्शाती
जिसमे पुरुष का  वर्चश्व
नारी की व्यथा
संस्कृति का पतन
संस्कारों की घुटन
सभ्यता के विकास का
लचर प्रदर्शन
आधुनिकता की और
बढ़ने का दंभ
ये तस्वीरें
किसी को पसंद नहीं आईं
आज का आधुनिक समाज
आधुनिक कला
समझता है
जिसका अर्थ
केवल  चित्रकार ही बेहतर समझता है
केवल  चित्रकार ही बेहतर समझता है

कवि हूँ

कवि हूँ
कवि हूँ कवि की गरिमा को पहचानो
करोगे वाहवाही कविताओं की  झड़ी लगा दूंगा
डूबते बीच मझदार को पार लगा दूंगा
कविता करना मेरा कोई सजा नहीं है
बुराइयों से बचाकर तुझे सजा पार करा दूंगा
कवि हूँ कवि की गरिमा को पहचानो
कविता की ताकत को  तुम क्या जानो
तुमने किया सजदा तो सर कटा दूंगा
उठाई जो तलवार तुमने प्रेम का पाठ पढ़ा दूंगा
की जो प्रेम की बातें सीने से लगा लूँगा
कवि हूँ कवि की गरिमा को पहचानो
प्रकृति मेरा प्रिय विषय रही है
हो सका तो चारों और फूल खिला दूंगा
सुंदरता की तारीफ की बातें न पूछो मुझसे
हो सका तो इसे नायाब चीज बना दूंगा
कवि हूँ कवि की गरिमा को पहचानो
जीता हूँ में समाज की बुराइयों में
लिखता हूँ कवितायें तनहाइयों में
अपराध बोध बुराइयों पर कर प्रहार
एक सभ्य समाज का निर्माण करा  दूंगा
कवि हूँ कवि की गरिमा को पहचानो
सभ्यताओं ने किया कवि दिल पर प्रहार
दिए नए नए जख्म नए नए विचार
विचारों की इन नई श्रंखला में भी
जीवन अलंकार करा  दूंगा
कवि हूँ कवि की गरिमा को पहचानो
कवि हमेशा जिया है दूसरों के लिएकवि हमेशा लिखता है समाज के लिएदिल से बरबस आवाज ये निकलती है
हे मानव जीवन तुम सब पर वार कर दूंगा
कवि हूँ कवि की गरिमा को पहचानो



प्रकृति

प्रकृति

सोचता हूँ
प्रकृति कितना महान है
जहां
पंखुड़ियों का खिलना
प्रातः काल मे जीवन के
पुष्पित होने  का
आभास देता है
पेड़ों पर पुष्पों का खिलना
हमारे चारों और
शुभ का संकेत देता है
पुष्प का फल मे परिवर्तित होना
हमारे आसपास किसी नए मेहमान के
आने का प्रतीक है
सोचता हूँ हवाओं से
पेड़ों का बार-बार हिलना
झुकना और फिर खड़े हो जाना
किस बात की और
संकेत देता है
निष्कर्ष से जाना कि
ये हवाएं जिंदगी के थपेड़ों का निष्कर्ष है
मुसीबतें हैं
घटनाएं हैं
जो हमें
समय समय पर  आकर
जीवन को मुश्किलों मे भी डटकर
कठिनाइयों का सामना कर
नवीन अनुभव देकर
जीवन को पुष्पित करती है

एक बात जो मुझे कचोट जाती है
टीस देती है वह है
पेड़ों से फलों का टूटकर गिरना
जो जिंदगी के अंतिम सत्य
कि और इशारा करता है
और कहता है
जीवन यहीं तक है और इसके बाद
पुनः नया जीवन
चूंकि
जब फल बीज 
बारिश का आश्रय पाकर
पुनः अंकुरित होंगे
और पुनः एक नवीन पोधे
का निर्माण होगा
यह जीवन चक्र यूँ ही चलता रहेगा
हर छण हर युग
आने वाली पीढ़ी
को पुष्पित करता रहेगा


आधुनिकता का दंभ

आधुनिकता का दंभ

आधुनिकता का दंभ भर
जी रहे हैं हम
टेढ़ी मेढ़ी पगडण्डी पर
चल रहे हैं हम
आधुनिकता का दंभ भर
जी रहे हैं हम
वस्त्रों से हमें क्या लेना
चिथडो पर जी रहे हैं हम
मंत्र सीखे नहीं हमने
गानों से जी बहला रहे हैं हम
आधुनिकता का दंभ भर
जी रहे हैं हम
पुस्तकें पढ़ना हमें
अच्छा नहीं लगता
इन्टरनेट मोबाइल से
दिल बहला रहे हैं हम
आधुनिकता का दंभ भर
जी रहे हैं हम
अति महत्वाकांक्षा ने हमको
कहाँ ला खड़ा किया है
अपराध की अंधी दुनिया मे
जिंदगी ढूंढ रहे हैं हम
आधुनिकता का दंभ भर
जी रहे हैं हम
सत्कर्मो से हमें
हमें करना क्या
बेशर्मो की तरह जिंदगी
जिए जा रहे हैं हम
आधुनिकता का दंभ भर
जी रहे हैं हम
अर्थ के मोह ने
हमें व्याकुल किया है
तभी अपराध की शरण
हो रहे हैं हम
आधुनिकता का दंभ भर
जी रहे हैं हम
आवश्यकताएं रोटी कपडा और मकान से
ऊपर उठ चुकी हैं
कहीं जमीर कहीं तन
कही सत्य बेचने लगे हैं हम
आधुनिकता का दंभ भर
जी रहे हैं हम
शक्ति और धन की उर्जा का
दुरपयोग करने लगे हैं हम
गिरतों को और नीचे गिराने
ऊंचों को और ऊँचा उठाने लगे हैं हम
आधुनिकता का दंभ भर
जी रहे हैं हम
हमारे पागलपन की हद तो देखो
मानव को मानवबम बना रहे हैं हम
जानवरों की संख्या घटा दी हमने
आज आदमी का शिकार करने लगे हैं हम
आधुनिकता का दंभ भर
जी रहे हैं हम
अब तो संभलो यारों
अनैतिकता से दूरी रख जीवन  संवारो यारों
आधुनिकता की अंधी दौड से बहार आओ यारों
चारों और इंसानियत और मानवता
का मन्त्र सुनाओ यारों